पश्चिम उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरनगर के दंगों को एक महीना हो चुका है। धीरे धीरे अंदर की बातें उभर कर आ रही हैं। कुछ महिलाओं ने बलात्कार की केस दर्ज किए है। कई कैंपों से बीमारी और लोगों के मरने की खबर आ रही हैं। बच्चों के स्कूल की पढ़ाई छूट गई है। कैंप में रहने वाले लोगों की जि़ंदगी उथल पुथल हो गई है।
स्वास्थ्य के मुद्दों पर काम करने वाली संस्था समा के अनुसार मुज़फ्फरनगर के लोई गांव के राहत शिविर में आठ बच्चे बीमार होकर मर गए। कैंपों की स्थिति का मुआइना किया तो स्वास्थ्य सेवाओं की कमी साफ दिखाई देती है। सरकारी डाक्टर नियमित रूप से किसी कैंप में नहीं पहुंच रहे हैं। जोला गांव के कैंप में तीन नवजात शिशुओं की मौत हो चुकी है। लोग बताते हैं कि डाक्टरों की टीम आधे घंटे में ही लौट जाती है। कई कैंपों से बच्चे और बड़े जिला अस्पताल में भर्ती हैं। बदलते मौसम और सरकार की लापरवाही के कारण कई लोग अब भी बीमार पड़ रहे हैं। पर इस स्थिति को संभालने वाला कोई नहीं है।
जोला और लोई कैंपों में तो सरकार की ओर से मिलने वाला थोड़ा बहुत दूध और राशन भी अब बंद कर दिया गया है। कई कैंप में लोग अपने गांव लौटना नहीं चाहते। दहशत की स्थिति में भागे लोग बेहद असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।
शांती की स्थिति बन गई है – ऐसा जताने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने कैंपों को मदद देना भी बंद कर दिया है पर इससे ज़मीनी स्थिति में कोई अंतर नहीं आया है। पहले दंगे और अब दंगों के बाद की नाज़ुक परिस्थितियों को संभालने में उत्तर प्रदेश सरकार अब तक नाकामयाब रही है।
मुज़फ्फरनगर में हालात और भी नाज़ुक
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