मिस्र। मिस देश की एक अदालत ने देश के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद मोर्सी को 2011 में जेल से भागने से जुड़े एक मामले में मौत की सज़ा सुनाई है। उन पर देश में अशांति फैलाने और सुरक्षा व्यवस्था को खतरे में डालने का आरोप है।
मिस्र के कानून के मुताबिक मोर्सी को मौत की सज़ा देने से पहले न्यायाधीश को धार्मिक नेता से सलाह लेनी होगी। मिस्र के पूर्व शासक होस्नी मुबारक को सत्ता से हटाने के बाद मोर्सी लोकतांत्रिक रूप से चुने गए थे। लेकिन जुलाई, 2013 में सेना ने तख्तापलट कर दिया।
पिछले महीने अदालत ने मोर्सी समेत सौ इस्लामवादी नेताओं को जासूसी और 2011 की क्रांति के दौरान एक जेल से कैदियों के भागने के मामलों में मौत की सज़ा सुनाई थी। मिस्र में इस समय सेना का शासन है। मोर्सी के अलावा सौ से भी ज़्यादा लोगों को जेल से भागने से जुड़े इस मामले में मौत की सज़ा सुनाई गई है। मामला 2011 का है जब मिस्र में उस समय के राष्ट्रपति होसनी मुबारक के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे थे। बड़ी संख्या में लोग जेल से भागे थे। मोर्सी पर जेल से कैदियों को भगाने का आरोप है। मोर्सी अभी जेल में हैं। उन्हें अपने शासनकाल के दौरान अपने खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों की गिरफ्तारी करने के लिए बीस साल की सज़ा सेना पहले ही सुना चुकी है।
मौत की सज़ा के इन सभी मामलों को मिस्र के धार्मिक गुरु के पास उनकी सलाह के लिए भेजा जाएगा। धार्मिक नेता मौत की सज़ा पर मुहर लगा देते हैं तो फिर भी एक बार मोर्सी इस फैसले के खिलाफ अपील कर सकते हैं। मोर्सी मिस्र के पहले चुने गए राष्ट्रपति थे।