दिल्ली में निजी टैक्सी सेवा, उबर की पहली महिला ड्राईवर शन्नो बेगम हैं। शन्नो ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं, इसलिए अपने पति की मौत के बाद उन्होंने वाहन चलाना सीख कर इसे अपना पेशा बना लिया।
तीन बच्चों की माँ शन्नो बताती हैं कि जब उन्होंने इसे पेशे के तौर पर अपनाया तो उन्हें काफी सवालों का सामना करना पड़ा था। लेकिन अपने बच्चों के पालन-पोषण के लिए उन्होंने वही किया जो उन्हें सही लगा।
शन्नो की कहानी किसी को भी प्रेरणा दे सकती है। पति के गुजरने के बाद शन्नो ने सबसे पहले सब्जी की ठेला लगाया। मगर उससे जो आमदनी होती थी उससे बच्चों को पालना मुश्किल होने लगा था। फिर वो एक अस्पताल में काम करने लगी थी। जब वहां से भी आमदनी इतनी नहीं हुई तब उन्होंने घरों में खाना पकाने का काम शुरू कर दिया। इस काम से वे 6 हजार रुपए प्रतिमाह कमा लेती थीं मगर ये भी काफी नहीं था।
तब शन्नो ने आजाद फाउंडेशन नाम की एक संस्था की सहायता से ड्राइविंग सीखी, और इसे अपना पेशा बनाने की ठान ली।