फरवरी 13, 2014 के दिन जब नेहा तनवर क्रिकेट के मैदान से निकली, तब वो नहीं जानती थी कि यह उनका आखरी मैच था। बेहद दुखी मन के साथ नेहा ने क्रिकेट से संन्यास लेकर अपना परिवार शुरू किया।
नेहा की परवरिश दिल्ली में ही हुई। क्रिकेट उनके बचपन का एक बड़ा एहम हिस्सा रहा था। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वो अपने देश का प्रतिनिधित्व करेगी।
दरअसल, नेहा एक कुशल एथलीट थी। कॉलेज में एडमिशन लेने के लिए एथलेटिक्स के ट्रायल के लिए ही गई थी। लेकिन उस दिन एथलेटिक्स के कोच नहीं आए और क्रिकेट का ट्रायल होने लगा। ये शायद संयोज ही था जो नेहा ने ट्रायल दे दिया और वो पास हो गई। जिसके बाद उन्होंने दिल्ली के मैत्रई कॉलेज में दाख़िला लिया।
18 साल की उम्र में ही नेहा की दमदार बल्लेबाज़ी ने उन्हें दिल्ली की सीनियर क्रिकेट टीम में दे दी। घरेलू टीम में ओपनर बैट्समैन होने के नाते उन्होंने 2010 के चैलेंजर ट्रॉफी में अपने शानदार प्रदर्शन के बाद 2011 में अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय खेल वेस्ट इंडीज के खिलाफ खेला।
गर्भवती होने के बाद नेहा ने अपना अधिकतम समय टीवी पर क्रिकेट देखते हुए बिताया। अंतर्राष्ट्रीय, रणजी, आईपीएल कुछ भी हो वो सब नेहा देखा करती थीं। उन्होंने हर मैच अपने दोस्तों के साथ फ़ोन पर बात कर देखा। टीवी पर टीम की प्रगति को देख कर उन्हें संतोष करना पड़ता था।
दरअसल, नेहा क्रिकेट से बाहर तो थी पर क्रिकेट उनसे बाहर कहीं नहीं गया। वो बहुत अधूरा महसूस करने लगी थीं।
नेहा ने क्रिकेट में वापसी के बारे में अपने परिवार को बताया लेकिन परिवार उनके स्वास्थ्य को लेकर चिंतित था। लेकिन जब डॉक्टर ने उनसे कहा की वो डिलीवरी के 6 महीने बाद ही ट्रेनिंग पर वापस जा सकती हैं तो यह जान कर उनके मन को शांति मिली।
अक्टूबर 14, 2014 में तनवर ने अपने बेटे श्लोक को जन्म दिया। प्लान के मुताबिक़ वो 6 महीने बाद मैदान में परीक्षण कारण शुरू की। गर्भावस्था के बाद नेहा का वजन 20 किलो तक बढ़ गया। इसको कम करना ही उनके लिए एक बड़ी चुनौती थी।नेहा जानती थीं कि उन्हें वापस फोम में आना है जिसके लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी होगी लेकिन वो इस बात से भी अनजान नहीं थीं कि उनका शरीर पहले की तरह नहीं रह गया था। परिवार के साथ होने के बाद भी उनकी शारीरिक क्षमता उनको कमजोर बना रही थी।
लेकिन तमाम तकलीफों और अक्षमतों के बावजूद नेहा ने हार नहीं मानी और आख़िरकार 6 महीने की कड़ी मेहनत के बाद नेहा ने अपना वज़न 20 किलो कम कर लिया और दिल्ली की टीम के ट्रायल्स के लिए पहुंच गईं।
वहां उन्हें देखकर किसी को यक़ीन ही नहीं हुआ कि वो एक बच्चा पैदा करने के बाद भी काफी फ़िट हैं। इसी तरह टीम में ज़्यादातर युवा खिलड़ियों को सराहा जाता लेकिन एक दिन मेरे अनुभव को भी जगह मिल गई।
एक बार फिर नेहा मैदान पर क़दम रखने के लिए तैयार थी। लेकिन ये उतना भी आसान नहीं था। जब पहले दिन अपने बेटे को छोड़ा तो गला भर आया था।
क्रिकेट के खेल ने नेहा को हिम्मत और खुशी दोनों दी। उन्होंने दिल्ली की टीम में जगह बनाई है और अब भारत की टीम में जगह बनाने के लिए तैयारी कर रही है।
नेहा कहती हैं “मेरे परिवार के समर्थन के बिना मैं ये बिलकुल भी नहीं कर पाती। हर बार जब मैं ट्रेनिंग में थी तब मेरे सास-ससुर ने बिना शिकायत किए श्लोक का ध्यान रखा और मेरे पति ने भी परिवार की पूरी ज़िम्मेदारी ली ताकि मैं मैदान में खेल सकूं। मैं अपने क्रिकेट कैरियर की दूसरी शुरुआत उनको समर्पित करती हूं।”
वो आगे कहती हैं कि “मातृत्व एक औरत की दूसरी ज़िन्दगी है। इसका सुख सब बदल देता है। जिसमें आपकी प्राथमिकताएं, आपका शरीर, आपकी पूरी ज़िन्दगी शामिल होती है। लेकिन फिर भी कुछ चीज़ें आप को छोड़ के कभी नहीं जाती।” क्रिकेट और नेहा का यही सम्बन्ध है।
लेख साभार: स्नेहल प्रधान/विस्डेन इंडिया