देहात और पिछड़े शहरी इलाकों में लोगों को लचर स्वास्थ्य सेवाएं और पर्याप्त सुविधाएं न होने के कारण कई बार अपनों की जान से भी हाथ धोना पड़ जाता है, लेकिन यह दर्द जब एक आईएएस और जिले के कलेक्टर ने महसूस किया तो उनकी वेदनाएं आंसुओं के साथ बाहर आ गई।
दमोह जिले के कलेक्टर श्रीनिवास शर्मा की माताजी पिछले कुछ दिनों से बीमार चल रही थी। बताया जाता है उन्हें सांस लेने में तकलीफ थी। उनकी तबियत बिगड़ी तो दमोह में पर्याप्त इलाज न होने के कारण उन्हें जबलपुर ले जाया जाना था। लेकिन उन्हें घंटों तक एंबुलेंस नहीं मिल सकी, जैसे तैसे एंबुलेंस मिलीं, लेकिन तब तक मां साथ छोड़कर जा चुकी थी। कलेक्टर श्रीनिवास शर्मा की 75 वर्षीय मां की जान लचर स्वास्थ्य सुविधाओं की बलि चढ़ गई।
तब दुखते दिल से यही निकला, कि ‘खराब सिस्टम ने मेरी मां की जान ले ली‘। हालांकि एक जिम्मेदार अधिकारी की तरह उन्होंने यह भी माना कि ‘इसके लिए मैं भी जिम्मेदार हूं‘। मामला है मध्यप्रदेश के दमोह जिले का।
इस सारे घटनाक्रम से निराश श्रीनिवास शर्मा कहते हैं कि इसके लिए सिस्टम जिम्मेदार है जिसमें कहीं न कहीं मैं भी दोषी हूं। 2004 बैच के आईएएस शर्मा दस महीने पहले दमोह में जिला कलेक्टर बनकर आए थे। उनकी 75 वर्षीय मां उनके साथ ही रहती थीं।
वो बताते हैं की सांस की गंभीर समस्या के चलते उन्हें जिला अस्पताल ले जाया गया था। डॉक्टर ने इस दौरान उनके उपचार का हर संभव प्रयास किया लेकिन जरूरी सुविधाओं के अभाव में वह काफी नहीं था। मजबूरी में उन्हें जबलपुर स्थित बड़े अस्पताल के लिए रेफर करना पड़ा। लेकिन उन्हें ले जाने के लिए वेंटीलेटर वाली एंबुलेंस पूरे जिले में कहीं नहीं थी। जब तक नजदीकी सागर जिले से एंबुलेंस की व्यवस्था की गई तब तक काफी देर हो चुकी थी। निराश शर्मा कहते हैं कि ये व्यवस्था का प्रश्न है। वो कहते हैं कि जैसा मेरे साथ हुआ अब ऐसा किसी के साथ नहीं होगा इसकी पुख्ता व्यवस्था की जाएगी।
मैंने तय कर लिया है कि महीने भर के अंदर ही दमोह के सरकारी अस्पताल में अपना आईसीयू और एंबुलेंस होगी। अगर सरकार इसके लिए फंड नहीं देगी तो मैं अपनी जेब से इसके लिए खर्च करूंगा।