तमिलनाडु के कृष्णगिरी जिले के पडिगंलम की सिधामल्लम्मा कंचप्पा की शादी 11 साल में अपनी मरी हुई बहन के पति से साथ करवा दी गई थी। 12 साल की उम्र में उन्होंने अपने पहले बच्चे को जन्म दिया, पर माँ की छोटी उम्र के कारण नवजात मृत पैदा हुआ था। उस समय उन्हें एक औरत की प्रजनन स्वास्थ्य और उसपर नियन्त्रण के बारे में पहली बार पता चला। इसके बाद उन्होंने अपने पति से दूसरा बच्चा पैदा करने में अधिक समय लेने की बात कह दी, और उनका दूसरा बच्चा आठ साल के बाद हुआ।
सिधामल्लम्मा सांप पकड़ने वाले आदिवासी जाति से हैं। वह तमिलनाडू के कृष्णागिरी के पडीगंलम पंचायत से 2011 में प्रधान बनी और सरपंच बनकर उन्होंने सबसे ज्यादा ध्यान महिला स्वास्थ्य को दिया है, और बाल विवाह, जल्दी-जल्दी गर्भधारण, खूनी की कमी और कुपोषण जैसी परेशानियों के बारे में महिलाओं को जाग्रक करना शुरू किया।
सिधामल्लम्मा ने 80 रुपये दिन के कमाने वाले मजदूरों को जनन स्वास्थ्य की जानकारी दी। उनका हंसमुख और जल्दी बातचीत करने वाले स्वभाव के कारण वह औरतों से इस विषय में खुलकर बात करने लगी।
सिधामल्लम्मा के अनुसार कृष्णागिरी जिले में महिलाओं में खूनी की कमी की समस्या अधिक है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के 2015 से 2016 के डाटा के अनुसार तमिलनाडू में 55.1 फीसदी महिला जनसंख्या 15 से 49 उम्र की हैं, ये खूनी की कमी से ग्रसित हैं। जबकि इनमें भी 2.2 प्रतिशत गंभीर खून की कमी से ग्रसित हैं।
आपको बता दें कि देश में 53 प्रतिशत महिलाएं खून की कमी से ग्रसित हैं। इनमें 55.1 प्रतिशत तमिलनाडू और 47.4 प्रतिशत अकेले कृष्णागिरी में है।
वहीं अस्पतालों और स्वास्थ्य सुविधा की कमी के कारण लोगों को इन सुविधाओं से दूर रहना पड़ता है। वहीं तमिलनाडू में आशा कार्यकर्ता का प्रतिशत 2012-13 में 23 प्रतिशत था, जबकि आंधप्रदेश में 91.7 प्रतिषत, कर्नाटका में 96.1 और केरल में 94.4 प्रतिशत है। कृष्णागिरी में 23.8 प्रतिशत गांवों में आशा कार्यकर्ता हैं।
सिधामल्लम्मा ने स्वास्थ्य प्रशिक्षिण लेकर महिलाओं को बताया कि हरी सब्जी, सहजन की पत्तियां और गुड़ खाने से हीमोग्लोबिन में वृद्धि होगी। सिधामल्लाम्मा ने मनरेगा में काम करने वाली महिला मजदूरों को स्वास्थ्य और बाल विवाह के बारे में बताया। सिधामल्लम्मा का महिला स्वास्थ्य के प्रति महिलाओं को जाग्रक बनाने की कोशिश काबिले-तारीफ है।
फोटो और लेख साभार: इंडियास्पेंड