पिछले कुछ महीनो में पत्रकारों पर हमलो की संख्या कुछ बढ़ सी गयी है, ख़ास तौर से महिला पत्रकारों की। अप्रैल के महीने में ही दो केस सामने आये हैं, जिस में से एक जानलेवा बनी, और दूसरी इन्टरनेट पर छिड़ी गयी। पर दोनों में समानता ये रही की महिलाओं को ही निशाना बनाया गया, और यौन हिंसा के भयानक रूप दोनों में ही देखे गए।
अप्रैल 5 की शाम को 45 वर्षीय पत्रकार अपर्णा कालरा बेहोशी की हालत में खून से लथपथ दिल्ली के अशोक विहार पार्क में मिली थीं, जिसके बाद उनकी हालत गंभीर बताई गयी है।
उनके परिजनों ने बताया कि उन्हें सिर में गहरी चोटें लगी हैं और उनके दिमाग की नसों को काफी नुकसान पहुंचा है। दिल्ली पुलिस की पड़ताल में यौन उत्पीड़न का एक पहलू भी सामने आया है, और उनका कहना है कि उन्होंने 22 वर्ष के एक युवक की पहचान भी की है।
जहां अपर्णा पर हिंसा के कारण का जुड़ाव उनके काम से है या नहीं, ये स्पष्ट नहीं है, वहीँ असम की एक प्रसिद्ध महिला कार्यकर्ता बोंदिता आचार्य पर हमला इसलिए हुआ कि उन्होंने अपनी राय दर्ज की। बोंदिता ने अपने फेसबुक पर ये कहा कि असम राज्य में गाय का मांस खाना आम बात है। इसके बाद ही उनको बलात्कार, तेज़ाब से हमले, और मौत की धमकियाँ मिलने लगी। यह स्पष्ट है कि धमकियां देने वाले लोग कट्टर हिन्दुव विचारधारा वाले संगठनों से जुड़े हैं। यहां तक कि बजरंग दल ने एक प्रेस ज्ञापन भी जारी किया जिसमें उन्होंने बोंदिता से सार्वजनिक रूप से माफ़ी मांगने के लिए कहा है।
क्या इन अपराधों पर कारावाही होना अनिवार्य नहीं है?