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इस हफ्ते, पढ़ें अलमास फातमी की खबर। पिछले करीब पांच सालों से पत्रकारिता कर रही हैं। वर्तमान में यह पटना में दैनिक हिंदुस्तान अखबार में रिपोर्टर हैं।
बिहार के गया के गहलौर गांव की एक सच्ची कहानी पर आधारित मांझी दा माउंटेन मैन फिल्म में राजधानी पटना की एक सरकारी संस्था के सात बच्चों ने भूमिका निभाई है। दशरथ मांझी नाम के एक गरीब व्यक्ति की कहानी पर आधारित इस फिल्म की चर्चा एक प्रेम कहानी के रूप में खूब हुई। मगर यह फिल्म विकास के दावों के हवा भरे गुब्बारे में पिन चुभाने का काम भी करती है।
दशरथ मांझी गहलौर गांव में रहता है। इस गांव में अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधा पाने के लिए तीन सौ साठ फिट लंबे और तीस फिट ऊंचे पहाड़ को पार करना पड़ता है। एक दिन दशरथ मांझी की पत्नी की मौत समय पर अस्पताल न पहुंच पाने के कारण हो जाती है। मांझी तय करता है कि वह पहाड़ को काटकर रास्ता बनाएगा। वह पूरे बाइस साल उस पहाड़ को हथौड़े और छेनी से तोड़ता है। लोग उसे पागल समझते हैं। सनकी कहते हैं। मगर इस लंबे समय में वह एक रास्ता बना देता है। इस बीच वह सरकारों से इस रास्ते को बनाने की गुहार लगाता है। मगर कोई उसकी नहीं सुनता। आखिर में जब लोगों को पता चलता है कि मांझी ने रास्ता बना लिया है। मीडिया और सरकार के लोग मांझी से मिलने और इंटरव्यू लेने पहुंचते हैं।
इस फिल्म को बनाया है निर्देशक केतन मेहता ने। केतन ने यह फिल्म एक आम व्यक्ति पर बनाई थी। सो उन्हें ऐसे चेहरे चाहिए थे जो उस संदर्भ के हों। इसलिए उन्होंने किलकारी संस्था से संपर्क किया और इसमें से सात बच्चे चुने। मांझी की पत्नी के बचपन की भूमिका निभाई है हेमा कुमारी ने तो हेमा के भाई बने हैं दसवीं में पढ़ने वाले दिवाकर। मांझी की बहू की भूमिका में दसवीं की छात्रा पूजा हैं तो छठवीं की छात्रा चांदनी कुमारी ने दशरथ मांझी की बेटी के बचपन की भूमिका निभाई है। राहुल कुमार ने दशरथ मांझी के बचपन की भूमिका निभाई है। फिल्म शूटिंग के वक्त बारहवीं में पढ़ने वाली छात्रा सुलेखा रानी दशरथ मांझी की बड़ी हो चुकी बेटी बनी हंै। दशरथ मांझी की बेटी के बचपन की भूमिका निभाने वाली चांदनी कुमारी का कहना है कि वह और भी फिल्मों में काम करना चाहती हैं। इस संस्था के निदेशक ज्योति परिहार ने बताया कि ये सारे ही बच्चे फिल्मों में जाना चाहते थे। अब एक बार मौका मिला है तो इनका हौसला बढ़ा है।