अब हर हफ्ते खबर लहरिया में पढ़ें महिला पत्रकारों की कुछ खास खबरें। राजनीति, विकास, संस्कृति, खेल आदि की ये खबरें देश के कोने-कोने से, छोटे-बड़े शहरों और अलग-अलग गांवों से हैं। इस हफ्ते, पढ़ें रिज़वाना तबस्सुम की खबर बनारस से। रिज़वाना तबस्सुम ने इसी साल पत्रकारिता में एम.ए. की पढ़ाई पूरी की और इस समय एक स्वतंत्र पत्रकार के रूप में काम कर रही हैं।
लोग बदले, समय बदला, ज़माना बदला। अगर कुछ नहीं बदला तो वह है औरतों कि जि़म्मेदारी। भले ही आज औरतें लड़ाकू विमान चला रही हों। पुरुषों संग कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हों। लेकिन घर की जि़म्मेदारी आज भी उन्हीं के हिस्से आती है। खाना बनाना, बच्चों की देखभाल, औरतों का ही काम माना जाता है। पहले भी औरतें खाना बनाती थीं। आज भी बना रही हैं। पहले औरतें सिर्फ घर का जि़म्मा उठाती थीं। लेकिन अब घर का काम करने के साथ दफ्तर का भी काम करती हैं। यानी अब औरतों के हिस्से दोहरी जि़म्मेदारी आ गई है।
ये स्थिति किसी छोटे से शहर की नहीं बल्कि भारत की राजधानी दिल्ली की है। जहां पर आपको सुबह ही औरतों की भीड़ मेट्रो में सफर करती हुई दिखाई देती है। दफ्तर से घर लौटते वक्त घर जाने की हड़बड़ी उनके चाल और चेहरे पर साफ दिखाई देती है। फोन पर यह कहते अक्सर सुनाई देती हैं कि बस मैं दस मिनट में पहुंचने वाली हूं। तुम प्लीज़ कूकर में आलू चढ़ा देना। देर से घर पहुंचने का पछतावा भी उनकी बातों से साफ दिखाई देता है। यार आज बहुत देर हो गई। आॅफिस जाते समय आॅफिस के काम में उलझी हुई दिखाई देती हंै। और वापस घर आते हुए घर के काम में लगी रहती हंै। मैं बनारस से कुछ दिनों के लिए यहां पर आई तो मंैने देखा कि दुकान से औरतें सब्ज़ी खरीद कर ले जा रही हंै। और मेट्रो में बैठकर आराम से सब्ज़ी छील रही हैं, कोई मिचर््ा के डण्ठल तोड़ने में लगी हुई है तो कोई अपने घर पर फोन करके कह रही है कि आलू उबाल देना, आटा गूंथ देना मैं आकर फटाफट खाना बना देती हूं। यानी आज भी महिलाओं को घर के काम की फिक्र लगी ही रहती है।
इसके उलट पुरुषों को देखें तो वे जाते वक्त फोन पर, टैब पर फिल्म देखते हुए जाते हैं। घर पर बात करते वक्त यही कहते सुनाई देते हैं, यार बहुत थक गया हूं। आज वाट लग गई। मैं बस पहुंचने वाला हूं। अच्छी सी चाय बनाकर रखना। बस आऊंगा, खाना खाकर सो जाऊंगा। कल जल्दी निकलना है। मतलब औरतें और पुरुष दोनों कामकाजी हैं। मगर घर संभालने की जि़म्मेदारी औरतों की ही दिखाई पड़ती है। छोटे शहरों और बड़े शहरों में औरतों के पहनावे, उनकी चाल-ढाल में अंतर तो है। मगर यह दोहरी जि़म्मेदारी यहां भी है और वहां भी।