अमृता कुमारी बिहार के समस्तीपुर जि़ले में स्वतंत्र पत्रकार हैं।पिछले करीब अट्ठारह सालों से पत्रकारिता कर रहीं हैं। राजनीतिक, सामाजिक मुद्दों में गंभीर रिपोर्टिंग कर चुकी हैंं। यह विचार उनके हैं।
बिहार विधानसभा के चुनाव इस बार और दिलचस्प होंगे। लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और मुलायम सिंह का महागठबंधन चुनाव से पहले ही टूट गया। मुलायम सिंह यादव इस गठबंधन से अपना नाता तोड़ चुके हैं। ऐसे में जिले की दस विधानसभा सीटों के चुनाव नतीजे देखने लायक होंगे।
बिहार विधानसभा चुनाव का पहला चरण 12 अक्टूबर को संपन्न होगा। 16 सितंबर से शुरू होकर 23 सितंबर तक उम्मीदवारों का नामांकन हुआ। 2010 के चुनाव में जिले में एक सीट पर भाजपा, दो सीट पर राजद, सात सीट पर जदयू के उम्मीदवार जीते थे। इस मगर इस बार नए गठजोड़ बने हैं तो नतीजे भी नए होंगे। कुछ पुराने जीते हुए उम्मीदवारों का टिकट कट गया तो कुछ नए चेहरे सामने आए हैं। उजियारपुर विधानसभा सीट के जीते हुए राजद के दुर्गा प्रसाद ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया। सूत्रों से पता चला कि पार्टी वहां से आलोक मेहता को चुनाव लड़ाना चाहती है। ऐसे में अपनी इज्जत बचाने के लिए दुर्गाप्रसाद खुद ही पीछे हट गए।
समस्तीपुर विधानसभा से भाजपा ने रेनू कुश्वाह को तो राजद ने अख्तारुल इशलाम साहिल को टिकट दिया है। सी.पी.आई से सुरेंद्र कुमार उम्मीदवार हैं तो निर्दलीय उम्मीदवार चंदन कुमार हैं। पिछली बार इस सीट पर राजद पार्टी के उम्मीदवार जीते थे।
कल्याणपुर की मौजूदा विधायक मंजू कुमारी की सीट भी छिनने के आसार हैं। हालांकि महागठबंधन इस सीट से किसे टिकट देगा कुछ साफ नहीं है। भाजपा गठबंधन से इस सीट में सांसद रामचंद्र पासवान के बेटे को टिकट मिल सकता है। लेकिन जातीय समीकरण के नजरिए और खुद पासवान की छवि को देखते हुए अगर ऐसा हुआ तो इस सीट पर भाजपा गठबंधन की जीत कठिन होगी। कुल मिलाकर भाजपा अगर अकेले लड़ती तो शायद कुछ उम्मीद बंध सकती थी लेकिन दूसरे दलों के साथ लड़ने का नुकसान ही नजर आ रहा है।
यह चुनाव भाजपा के लिए दिल्ली विधानसभा चुनाव जैसे नतीजे भी ला सकते हैं। उधर लालू और नीतीश के गठबंधन में भी उम्मीदवारों की व्यक्तिगत छवि नतीजों में अहम भूमिका निभाएगी। क्योंकि जहां लोग नीतीश से बहुत खुश हैं तो वहीं लालू से नाराज हैं। भाजपा चाहें जितनी भी हवा बना ले पर उसके पास यहां जमीनी स्तर पर काम करने वाले लोग नहीं हैं।
भाजपा के जिला अध्यक्ष सुशील कुमार चैधरी तो शीर्ष नेतृत्व से नाराज होकर मोबाइल बंद कर घर में बैठे हैं। दरअसल चैधरी ने अपने नजदीकियों को टिकट देने का भरोसा दिया था। मगर उनके द्वारा किए इस वादे को शीर्ष नेतृत्व ने तोड़ दिया।