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महिला पत्रकारों की कलम से – निजी हाथों में जनता की सेहत!

स्मिता सिंह वत्स

स्मिता सिंह वत्स

स्मिता सिंह वत्स पिछले करीब छह सालों से पत्रकारिता से जुड़ी हैं. मौजूदा समय में कई अखबारों और पत्रिकाओं में लेखन करती हैं। इससे पहले पी7 और राजस्थान पत्रिका में काम कर चुकी हैं।

पिछले महीने राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया की सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया। उन्होंने इकत्तीस प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को चलाने का जि़म्मा निजी हाथों में सौंप दिया। हालांकि यह सरकार और निजी स्वास्थ्य केंद्रों की साझीदारी से चलाए जाएंगे। पैसा सरकार का और काम निजी केंद्रों का।

स्वास्थ्य विभाग के अनुसार राज्य में इस समय करीब पंद्रह प्रतिशत डाॅक्टरों की कमी है। कई निजी अस्पताल संस्थान और स्वयंसेवी संगठन इस जि़म्मेदारी को उठाने के लिए बेकरार दिख रहे हैं। विश फाउंडेशन नाम की स्वयंसेवी संस्था ने ही तीस प्राथमिक स्वास्थय केंद्रों का जि़म्मा उठा भी लिया है। केद्रों में डाॅक्टरों से लेकर दूसरे स्वास्थ्य कर्मचारियों तक की नियुक्तियां इन्हीं निजी केंद्रों के जि़म्मे होंगी।

सरकार के इस कदम से जनता के मन में सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब सरकार इन दूर दराज़ के इलाकों में स्वास्थ्य सेवाएं नहीं पहुंचा पाई तो निजी विभाग कैसे पहुंचाएंगे? तो क्या सरकार के पास से ज़्यादा संसाधन इन लोगों के पास हैं? साथ ही सेहत जैसी बुनियादी ज़रूरत को निजी हाथों में सौंपने पर भी विश्वसनीयता का सवाल है। राज्य में हर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर सरकार सालाना बत्तीस लाख रुपए खर्च करती है। इन्हें चलाने के ठेके उन्हीं संगठनों को दिए जाएंगे जो बत्तीस लाख से कम लागत में इन्हें चला सकें। ऐसे में माना यह भी जा रहा है कि निजी संगठन इन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को ग्रामीण इलाकों में स्वास्थय व्यवसाय का नया बाज़ार देख रहे हैं।

इन्हीं सब तर्कों के आधार पर कुछ स्थानीय स्वयंसेवी संस्थाएं और निजीकरण के विरोधी इसे एक नए घोटाले की आहट मान रहे हैं। उनका मानना है कि निजी व्यवसायी अपने लालच के लिए सरकार से हाथ मिला रहे हैं। होगा यह कि यह लोग अपना फायदा देखते हुए स्वास्थय सेवाओं की गुणवत्ता से समझौता करेंगे।

सरकार के इस कदम में मेडिकल ट्रेनिंग ले रही नर्सों, एएनएम्स, फार्मासिस्ट्स, लैब तकनीशियनों आदि को भी काफी निराशा हुई है। आंकड़ों के अनुसार हर साल करीब तीस से चालीस हज़ार विद्यार्थी नर्सिंग, मेडिकल और फामेर्सी कॉलेजों से पास होकर सरकारी नौकरी पाने की चाह में निकलते हैं। मगर अब इन्हें नौकरी देंगे निजी संस्थान। इनके वेतन और दूसरे भत्तों में कटौती करके।