खबर लहरिया ताजा खबरें महिलाओं की नजर से क्यों देखा जाना जरुरी है ‘बजट 2016’?

महिलाओं की नजर से क्यों देखा जाना जरुरी है ‘बजट 2016’?

Arun_Jaitley_at_the_India_Economic_Summit_2010_cropped

बजट 2016 -17 पेश हो चूका है और हर बार की तरह इस बार भी बजट पर महिलाओं की नजर है। यह कितना संतोषजनक है अभी यह कहना मुश्किल होगा लेकिन सरकार द्वारा मिली रकम और योजनाओं को देखते हुए इस बजट पर सवाल उठाना जरुरी हो जाता है।

– महिलाओं के लिए इस बजट में क्या खास है? क्या इसमें महिलाओं के लिए कम से कम 2 विशेष प्रावधान हैं!

– क्या ये प्रावधान महिलाओं को उनकी पारम्परिक भूमिका के बाहर भी देखने को मजबूर करती हैं?

– क्या ये प्रावधान महिलाओं की ख़ास ज़रूरतों को देख पा रही हैं, या उनको अन्य वंचित समूहों की श्रेणी में ही ला कर खड़ा कर रही है?

पिछले साल (2015 -16 वित्तीय वर्ष) महिलाओं को प्रावधान के तहत कुल 16,657 करोड़ रूपए मिला था। इस आबंटित रकम में 5000 करोड़ रूपए की कटौती की गई जो उपयोग के समय या अक्सर साल की शुरुआत में की जाती है। इस कटौती के बाद महिला सम्बंधित योजनाओं के लिए कुल 11,388 करोड़ पुनः आबंटित हुआ। इस साल (2016 -17 वित्तीय वर्ष) का आबंटन मात्र 755 करोड़ रूपए की बढौती के साथ 17,412 करोड़ रूपए है। यह आबंटन, सरकार की बढ़ा-चढ़ा कर की गयी बातों के इतर सरकार की सीमित मानसिकता को दर्शाता है।

इस बजट में सिवाए रसोई गैस सिलेंडर के महिलाओं के लिए कुछ भी खास नहीं है। बजट 2016 के अनुसार गरीब परिवारों की महिलाओं को रसोई गैस उपलब्ध करायी जा रही है। इसके लिए 2000 करोड़ रूपए का आबंटन किया गया है. यहाँ एक समस्या यह भी है कि रसोई गैस बीपीएल कार्ड होने पर ही दिया जाएगा। जबकि, ज़मीनी हकीकत यह है कि कई दलित और आदिवासी महिलाओं के पास बीपीएल कार्ड है ही नहीं. इस पहल को यदि छोड़ दिया जाये तो दलित और आदिवासी महिलाओं के लिए इस बजट में कुछ भी खास नहीं बचा है। प्रत्येक वंचित समूह फिर वो दलित हो या आदिवासी हो या महिलाएं, सभी को एक ही श्रेणी में रख कर उनके लिए प्रावधान बनाना सही नहीं है।

पिछले कुछ सालों के बजट को देखा जाये तो दलित और आदिवासी महिलाओं के कल्याण के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा संतोषजनक पैसा आबंटित किया जा चुका है। हालांकि यह बात अलग है कि बाद में उस पैसे को अन्य प्रावधान में लगाया गया।

बजट 2016-17 में आईसीडीएस (जिसमें आंगनवाड़ी योजना, मिड डे मील, आशा कार्यकर्ता इत्यादि है) के आबंटित रकम में पिछले साल की अपेक्षा 1394 करोड़ कम रकम आबंटित की गयी है। यानी यह मान कर चालिए कि इस साल आंगनवाड़ी योजना पर काफी दबाव रहेगा और राज्य सरकार को भी ज़्यादा खर्च करना पड़ेगा। हालांकि सरकार ने घोषणा की थी कि इस बार महिलाओं से जुड़ी योजनाओं के लिए 55 प्रतिशत अधिक आबंटन किया जायेगा। लेकिन बजट आने के बाद महिलाओं और किशोरियों की खास आईसीडीएस योजना के पर कुछ विशेष रियायत नहीं की गयी।

महिला हिंसा से जुड़ी घरेलु हिंसा रोकने वाली योजना को भी कोई आबंटन नहीं दिया गया।

यही नहीं, इंदिरा गांधी मातृत्व सहयोग योजना को इस बार सिर्फ 400 करोड़ रूपए आबंटित किये गये हैं. जो प्रत्येक जिले में लागू करने के लिए काफी नहीं है।

रेलवे बजट में महिलाओं की सुरक्षा और सुविधा के लिए 182 सुरक्षा हेल्पलाइन की घोषणा के अलावा कोई नई पहल नहीं की गयी। जबकि यह हेल्पलाइन भी पिछले साल की योजनाओं में है।

भारत सरकार ने 2005 में जेंडर संवेदनशील नज़रिए से बजट पर काम करने की प्रक्रिया लागू की थी। जिसका मुख्य उद्देश्य केंद्रीय या राज्य स्तर पर तय किये गये बजट द्वारा महिलाओं की विशेष स्थिति व मुद्दो के प्रति संवेदनशील होकर काम करना है।

इस पूरी बजट प्रक्रिया से पता चलता है कि सरकार ने महिलाओं की ज़रूरतों को कितनी हद तक ध्यान में रखा है। पिछले साल से ही पूरे बजट में से सिर्फ 4. 5 % खास महिलाओं के लिए आबंटिक हुआ है ।  इस साल कई महिला विशेष योजनाओं को जोड़कर एक बड़ी योजना बनाने की कोशिश के चलते आबंटित रकम को कम किया गया है। जिसके कारण बजट के आबंटन और खर्च की पारदर्शिता कम हो गयी है।

जानकारी लेडीज़ फिंगर और बजट आलेख से ली गयी है।