अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में डोनाल्ड ट्रम्प से हारने के बाद हिलेरी क्लिंटन ने अपने इस अनुभव को बेहद दर्दनाक बताया। हिलेरी चुनाव में सबसे मजबूत दावेदार थीं, पर उनकी हार के पीछे अमेरिका का एक बहुत बड़ा वर्ग रहा जो यह मानता है कि महिलाएं बड़ी जिम्मदारी नहीं ले सकती। उन लोगों की विचारधारा है कि वह लोग महिला को राष्ट्रपति के रूप में नहीं देख सकते हैं। यह बात बेहद चौंकती है क्योंकि अमेरिका सबसे प्रगतिशील राष्ट्रों में से एक माना जाता है। एक महिला को अपने राष्ट्रपति के रूप में स्वीकार न करना, अमेरिका को एक रूढ़िवादी सोच वाले देश के दायरे में डाल देता है।
यहाँ सोचने वाली बात यह है कि दुनिया के किसी भी कोने में महिलाएं, पुरुषों के समकक्ष नहीं समझी जातीं, लेकिन फिर भी वह लगातार इस हाशिये को लांघने में लगी रहती हैं। उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं जिसके लिए बुंदेलखंड से गुलाबी गैंग प्रमुख संपत पाल और पंचायत चुनाव में उम्मदीवार रही शीलू निषाद शामिल हैं। यह महिलाएं ‘पुरुषों के जैसी’ रणनीति अपना रही हैं, जिसमें वह अपने पास पिस्तौल रखना, गैंग बनाना, लोगों पर रौब जमाना और अपने प्रतिद्वंदी से नफरत करना आदि तरीके अपना रही हैं। लेकिन ये महिलाएं ऐसे रास्ते क्यों चुनती हैं? शायद वह सोचती हैं कि उन्हें तभी संजीदगी से लिया जायेगा जब वह समाज में ‘पुरुषों जैसे’ तरीके अपनाएंगी। वैश्विक स्तर पर देखा जाये तो पुरुष अपनी सत्ता छिन जाने के भय से महिलाओं को हर क्षेत्र से बाहर करना चाहता है।
महिलाएं अमेरिका की हों या भारत की, उनके सपने और हौसले एक जैसे ही हैं। वह आगे बढ़ना चाहती हैं और दुनिया के माथे पर लगे अबला होने के दाग को अपनी कामयाबी के बल से मिटाना चाहती हैं। हालाँकि शुरुआत अच्छी है क्योंकी महिलाएं पुरुषों के समाज की किरकिरी तो बन ही गयी हैं, अब देखना है कि कब महिलाएं पुरुषों को उनके ही खड़े किये गये पुरुषवर्चस्ववादी किले से निकाल बाहर करती हैं।
महिलाएं, सत्ता, और राजनीती
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