जिला बांदा। सबको रोजगार की गारंटी देने वाली मनरेगा योजना में मजदूरों की मजदूरी मिलेगी या नहीं, इसकी गारंटी लेने को कोई तैयार नहीं है।
ब्लाक बड़ोखर खुर्द, गांव कतरावल। यहां के जयराज और रामराज ने 4 फरवरी को डी.एम. को दरखास दी। इसमें कहा गया है कि दोनों ने मिलकर 2013 में छह सौ खन्ती खोदी थीं। एक सौ बयालिस रुपए प्रति खन्ती के हिसाब से पचासी हजार दो सौ रुपए मजदूरी बनी। इसमें से अब तक केवल चैदह हजार नौ सौ रुपए मिले। प्रधान से जब यह लोग मजदूरी की बात करते हैं तो वह साफ कह देता है कि सबकी मजदूरी चुकता की जा चुकी है। इस मामले को लेकर 2 सिंतबर 2014 को तहसील दिवस और 5 नवंबर 2014 को डी.एम. को दरखास दी गई।
ब्लाक नरैनी, गांव पुकारी। यहां के रमेश, गोना और रुचि का कहना है कि नवंबर 2014 में चालिस लोगों ने खंती का काम किया है। लेकिन उनका भुगतान नहीं किया गया। प्रधान गिलिया से जब यह लोग अपनी बकाया मजदूरी मांगते हैं तो वह कहती हैं कि कुछ भी बाकी नहीं है।
बी.डी.ओ. रामकिशन से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने कहा – ’अगर मेरे पास दरखास आएगी तो मैं कार्यवाई करूंगा।’ इस बारे में मनरेगा डी.सी उमेश चन्द्र तिवारी से पूछने पर उन्होंने कहा – ’इतनी पुरानी मजदूरी किसी की बाकी नहीं है अगर किसी की बाकी है भी तो लोग संबंधित विभागों में दरखास दें। जांच होगी। वैसे मैंने कई शिकायतों की कई जांच की है। ज़्यादातर शिकायतें झूठी साबित होती हैं।’
जब मेट बन गई महिला
जिला चित्रकूट, ब्लाक कर्वी। वनांगना संस्था महिलाओं के सषक्तिकरण और उनके अधिकारों के लिए काम करती है। पुरुषों के माने जाने वाले काम के क्षेत्रों में यह संस्था महिलाओं को हैण्डपम्प मकेनिक और मेट का प्रषिक्षण देती है। चित्रकूट और बांदा में कुल बीस दलित महिलाओं को मेट बनने के लिये तैयार किया। उनमें से एक हैं मेट कमला।
कमला बताती हैं कि मैं ब्लाक मानिकपुर, गांव बसिला की रहने वाली हूं। मेरे गांव में दो साल से मनरेगा काम ठप्प है। मई 2011 में मैंने एक तालाब की खोदाई कराई। इसमें एक सौ पंद्रह महिलाओं ने काम किया। मनरेगा की जांच पड़ताल में जाने वाले अधिकारियों से उनके सवालों का संतोष जनक जवाब दिया। 2011 में मैं महिला मेट रेनुका की सहयोगी थी। तब गांव में काम मिलता था। हम दोंनों की कोषिष रही है कि मनरेगा में ज़्यादातर महिलाओं को शामिल किया जाए। जिन कामों को महत्व नहीं दिया जाता था जैसे – महिलाओं के बच्चों को खिलाना, पानी, छाया और दवा की व्यवस्था करना, उन कामों को मैंने महत्व दे कर कराया। मेरे गांव का तालाब बन के तैयार हो गया। उसके बाद से जरूरतमंद कामगारों को मजदूरी के लिए शहर जाना पड़ रहा है।