गांव हुयै या शहर हर जगह पै मनई दाना, दाना खातिर तरसत बाय तौ दूसरी वारी अन्न कै होत बाय बर्बादी। काहे से कि आज कै बढ़त जनसंख्या यतना होय जात बाय कि पेट भरब मुश्किल होय जात बाय हर तरफ तंगी के अलावा अउर कुछ नजर नाय आवत बाय वही गांव मा एक घर के भीतर दस , बीस लोग एक साथ रहाथिन। उनकै परिवार लम्बा जाथै पर खेत तौ नाय बाढ़त बाय कि यहि येतने राशन से साल भै पूर होय जाये एक ओर मनई खाय कि खातिर तरसत अहै। वही दूसरी वारी गोदामन मा गल्ला सड़ जात बाय हिंया तक जौवन राशन बाहर से टे्न पै के आवाथै ऊ आधा बचाथै अउर आधा गाड़ी मा ही गिर जाथै कुछ उतारत के जमीन पै बहुत अनाज गिर जाथै यहि तरह से अनाज कै बर्वादी हुआ थै। फिर उहै धूल कंकर उठाय के सारे जनता तक पहुंचाय दीन जाथै सब गरीब मनई आपन पेट पालै खातिर खाय का पराथै। हर गांव मा बहुत कम मनई कै राषन नाय बना बाय अउर जेकर बनौ बाय ओका बराबर से राशन नाय मिलत अहै। अगर लोगन से पूछा जाथै तौ कहाथे कि प्रधान नाय बनावत हइनअउर प्रधान से कहे पै पता लागाथै कि केहूं कै बी.पी. एल. मा नावै नाय तौ केहूं कै फारम भरा गै अबही लिस्ट बनके नाय बाय आखिर साल भर से ज्यादा होय जात बाय सरकारी सर्वे का कब आये बनके नया राशन कार्ड ?
मनई तरसत बाय दाना खातिर
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का मन भीतर के डेर का हटा पाई प्रशासन ?
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