थोबल, मणिपुर। मणिपुर का थोबल जि़ला बाढ़ग्रस्त है। मैपीथेल बांध के आसपास बसे गांवों के लोगों को ऊंचाई पर बने कैंपों में पहुंचा दिया गया है। जुलाई के तीसरे हफ्ते में हुई बरसात के बाद 25 जुलाई को जब यह खबर आई कि बांध से पानी रिस रहा है तो बिशनुपर और थोबल जि़ले के छह गांवों के लोगों ने मेगा डैम प्रोजेक्ट के आफिस में इसकी सूचना दी। उसके बाद कई अधिकारियों ने आकर जांच की तो पाया कि बाढ़ का खतरा करीब ही है।
दूसरे दिन शाम को करीब दस हज़ार लोग अपने अपने घरों को छोड़कर ऊंचाई पर चले गए। तीन अगस्त को सरकारी कैंप भी लगाए गए। 1 अगस्त को बांध में पानी खतरे के निशान से दो मीटर ऊपर पहुंच गया था। स्थानीय लोगों ने बताया कि दो सौ सालों में यह सबसे जोखिम भरी बाढ़ आई है। साठ हज़ार हेक्टेयर ज़मीन पानी में डूब गई है और करीब पचास हज़ार लोगों को कैंपों में रखा गया है। धान की खेती लगभग बरबाद हो चुकी है। बाढ़ में तीन बड़े पुल भी बह गए।
विरोध के बाद भी बना था बांध
थोबल बहुउद्देशीय हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट की शुरुआत 1980 में हुई थी। स्थानीय लोगों ने अजऱ्ी लगाई कि इस बांध परियोजना में स्थानीय लोगों की सहमति नहीं ली गई।
बाढ़ रोकथाम और सिंचाई विभाग ने यह बात मानी भी। राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल विभाग की तरफ से हरी झंडी नहीं दी गई। बांध के बनने में छह सौ हेक्टेयर के जंगल काट दिए गए। हालांकि इस बांध परियोजना को पूरी तरह से शुरू नहीं किया गया है। मगर जंगलों के कटने और बांध के बनने के असर अभी से दिखने लगे हैं। पर्यावारणविद आर. के. रंजन सिंह ने बताया कि बाढ़ का खतरा 2005 से बढ़ गया है। इनका कहना है कि इस बाढ़ में बांध के आसपास बहने वाली छोटी नदियों का भी योगदान है। बांध की परियोजना तैयार होने से पहले इनका प्रबंधन ज़रूरी था। नदियों में क्षमता से ज़्यादा पानी बह रहा है। कुल मिलाकर यह बाढ़ सरकार की जल्दबाज़ी और जनता और पर्यावरण की अनदेखी का नतीजा है।