मनरेगा मा काम अउर काम का दाम न मिलै से मड़इन का गुस्सा करब अउर दरखास देब जायज है। काहे से मड़ई काम तौ कई लीन, पै भुगतान खातिर सालन परेशान रहत हैं। अगर मनरेगा के नियम मा है कि मजदूरी का भुगतान सात दिन मा कीन जई तौ होय का भी चाही।
कहैं के बात मा या है कि अब मड़इन के काम का भुगतान सीधे उनके खाता मा डाल दीन जई, पै मस्टर रोल तौ पंचायत मित्र अउर सचिव ही बनावत हैं। तबै मजदूरन के मजदूरी मिल पावत है। सोचै वाली बात या है कि कउनौ भी काम करावैं के पहिले बजट सरकार पहिले से भेज देत है। तबै काम शुरू होत है। फेर भी मजदूरी का बजट मजदूरी मा न खर्च कइके दूसर काम मा न खर्च करै तौ समय से मजदूरी भी मिल जा सकत है।
यहै कारन है कि मड़ई मनरेगा के मजदूरी करब कम पसंद करत है। परदेश कमाय जाब नींक मानत है। काहे से होंआ मजदूरी का भुगतान समय से होत है अउर ज्यादा रूपिया मिलत है।
हम बात करित है बांदा जिला के कइयौ गांवन के मड़इन के मजदूरी भुगतान न होय के। कउनौ मड़ई के 20 खन्ती का रूपिया परा है तौ कउनौ के 40 खन्ती के। यतना खन्ती का रूपिया बाकी रहैं का ही चाही। अगर सरकार जनता के हित ता ध्यान धई के या योजना लागू करिस तौ नींक से चलैं का भी चाही। भुगतान न मिलै से मड़ई रूपिया मिली कि नहीं या भी भरोसा नहीं करत आय। वइसे से भी मजदूरी कम मिलै का मुद्दा हमेशा से रहा है। अगर अबै मजदूरी कम मिलै का भी भुगतान यतना जोर मा भी है तौ मड़ई मनरेगा का काम काहे करी? सरकार का यहिके बारे मा अउर गहराई से काम करैं अउर सोचैं के जरूरत है।
मजदूरी भुगतान मा काहे आवै दिक्कत
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