स्वास्थ्य विभाग के सबसे बड़े अधिकारी के कहैं के हिसाब से कि स्वास्थ्य विभाग मा जन्म मरण तौ होत ही हैं जेहिका रोका नहीं जा सकत आय। या बात तौ सही है पै अगस्त, सितंबर अउर अक्टूबर मा अगर डिघवट, विसण्ड़ा, इटरा खुर्द, महुआ अउर बसरेही के औरतन के लगातार डिलेवरी के दौरान एक के बाद एक मउत होत जात हैं तौ स्वास्थ्य विभाग का अपने काम मा सुधार लावैं के जरूरत है।
जननी सुरक्षा चलावैं के पीछे सरकार के सोच रहै कि सुरक्षित डिलेवरी कराई जा सकै। जच्चा बच्चा का स्वास्थ्य नींक रहै अउर मृत्यू दर कम कीन जा सकै। पै अगर औरतन का मउत के मुंह समात ही जाय का है तौ या योजना चलाये कउन फायदा? हां एक फायदा जरूर होत है कि हर साल या योजना का चलावैं खातिर मिलैं वाला लाखन रूपिया का बजट आसानी से मिल जात है। या योजना चलाये कउन फायदा है जेहिमा जिन्दगी नहीं मउत का की मुह देखैं का परै। तीन महीना के भीतर जउन भी मउत भईं हैं उईं सब मा बेगैर देखे अस्पताल से वापस करैं, खून के ज्यादा बहैं, नींक इलाज न होय अउर रिफर के बाद जल्दी साधन न मिलैं से जच्चा बच्चा के मउत भईं हैं। या हालत मा डाक्टरन के लापरवाही नहीं तौ अउर का कहा जाय। स्वास्थ्य विभाग भले ही आपन कर्मचारिन के लापरवाही का खुलासा न करै, पै औरतन के परिवार वाले सड़क जाम कइके सीधे करमचारिन के ऊपर लापरवाही का आरोप लगाइन अउर कारवाही के मांग करिन हैं। अब देखैं का या है कि स्वास्थ्य विभाग यतने मामला के कारवाही सच मा जमीनी स्तर से करी कि नाम खातिर कारवाही कइके रहि जई?
मउत के मुंह काहे समात जच्चा बच्चा?
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