आाखिर मंहगाई आपन रूतवा दीवाली के ऊपर भी दिखा ही दिहिस। मंहगाई के मारे मड़ई हर खुशी मा आपन हाथ समेटत रहिगा।
का कम होई मंहगाई? कउन कम करी मंहगाई? मंहगाई बढ़ावै का जिम्मेदार कउन है? इनतान के बहुतै सवाल हैं जिनके ऊपर लम्बी चैड़ी बात जरूर होत है, पै बात करै से का फायदा जब वहिका कम नहीं नहीं करैं चाहत आय। मड़इन का लुभावैं अउर वोट बटोरैं के आड़ मा मंहगाई कम करैं के बात जरूर कीन जात हैं। अगर मंहगाई घट जाई जई तौ नेता मंत्री सुख के जिंदगी कसत बीतइहैं। इनका फायदा है या मारे मंहगाई घटावंै का नाम नहीं लेत। अब अगर हम रानीतिक पार्टीन के बात करी तौ चुनाव के समय मंहगाई का खास मुद्दा बनावा जात है। मंहगाई कम करै का वादा कीन जात है। भाषण कीन जात है। जबै नेता बन के चाहे राज्य सरकार मा पहुंचै या केन्द्र सरकार मा उंई भी मंहगाई बढ़ावै मा ज्यादा ध्यान देत है घटावैं मा नहीं
इं सबै चीजन के मंहगाई के मार आम जनता अउर किसान अउर मजदूर मड़ई का झेलैं का परत है। जहां एक कइत सब्जी तेल अउर गृहस्थी के सामान मा मंहगाई है तौ दूसर कइत खाद अउर डीजल के ऊपर है। अगर सरकार इनतान के मंहगाई मा रोक नहीं लगा सकत आय तौ जनता का सरकार से कउन फायदा है?
मंहगाई का तेवर, दिवाली परी फीकी
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