तेलंगाना भारत का नया राज्य है। यहां के मंत्रिमंडल में उन्नीस मंत्री हैं। लेकिन यह सारे मंत्री पुरुष हैं। यानी तेलंगाना में एक भी महिला मंत्री नहीं है। यहां की औरतें नाराज़ हैं आखिर उनकी आबादी का प्रतिनिधित्व मंत्रिमंडल में क्यों दिखाई नहीं देता है। हालांकि यह ऐसा अकेला राज्य नहीं है जहां की औरतें मंत्रिमंडल में नहीं हैं। उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, पांडुचेरी और नागालैंड राज्यांे में भी महिलाएं मंत्रिमंडल से गायब हैं। मगर औरतों की गैरमौजूदगी का आंदोलन चलाने वाला यह पहला राज्य है।
कांग्रेस की विधायक डी.के. अरुणा ने सुप्रीम कोर्ट में एक अजऱ्ी भी दाखिल की थी। इसमें मंत्रिमंडल में औरतों की मौजूदगी को ज़रूरी किए जाने की मांग की गई थी। लेकिन उनकी इस मांग को नहीं माना गया। इस अजऱ्ी के अलावा औरतें एकजुट हो ट्विटर के ज़रिए भी यह मांग उठा रही हैं। राज्य के मुख्यमंत्री केण् चंद्रशेखर राव को भी अजऱ्ी भेजी गई है। यह मांग उठाने वाली औरतें वही औरतें हैं जिन्होंने तेलंगाना के अलग राज्य के मुद्दे पर भी आंदोलन में जमकर हिस्सा लिया। इनमें से कुछ औरतों के बच्चे, पति, भाइयों की आंदोलन के दौरान जान भी गई।
आठ मार्च 2015 को राजनीतिक दल तेलंगाना राष्ट्र समिति यानी टीण्आरण्एसण् से सांसद केण् कविथा ने इस दौरान आयोजित हुए ‘एम्पावरिंग विमेन एम्पावरिंग ह्यूमेनिटी’ नाम के महिला सशक्तिकरण के एक कार्यक्रम में कहा था कि अगर लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक पारित हो जाए तो टी.आर.एस. पार्टी केंद्र को पूरा समर्थन देने को तैयार है। टीण्आरण्एसण् के चुनावी घोषणा पत्र में भी यह साफ लिखा गया था कि वह राष्ट्र कभी उन्नति नहीं कर सकता है जहां पर औरतों की भागादारी न हो। मौजूदा साल जुलाई में डी.के. अरुणा ने औरतों को मंत्रिमंडल में जगह दिए जाने की मांग को लेकर एक जनहित
याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी। पांच अक्टूबर को मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने दशहरे के बाद मंत्रिमंडल में फेरबदल की घोषणा भी की है। इस आंदोलन से जुड़ी महिलाओं का यह भी कहना है कि तेलंगाना के अलग राज्य गठन के आंदोलन और दूसरे कई आंदोलनों में औरतों की हिस्सेदारी पुरुषों से कम नहीं है ऐसे में मंत्रिमंडल में औरतों की हिस्सेदारी ज़रूरी हो जाती है।
यह खबर आई है द लेडीज फिंगर से, जो खबर लहरिया के नए पार्टनर हैं । उनकी अंग्रेजी खबर यहां पढ़िए ।