खाना का लइके भेदभाव समाज मा सब मनई कराथिन। हिंआ तक कि मां-बाप भी भेदभाव रखा थिन। बेटवा का अच्छा खाना जैसे दूध, फल, ताजा खाना दिया थिन। यही तरह परिवार मा घर कै सब काम मेहरारू कराथिन जवन खात के समय पहले पति अउर परिवार के खाना खाये के बाद खाथिन। एक अन्तर्राष्ट्रीय सर्वे के अनुसार भारत मा चैहत्तर प्रतिषत बच्चा अउर बावन प्रतिषत मेहरारू खून की कमी कै षिकार अहै। बचपन अउर किषोरावस्था मा भेदभाव से जुड़ी मेहरारू का कुपोषण के कारण कमजोर कुपोषित बच्चा पैदा हुआ थै। समाज मा खान पान अउर स्वास्थ्य का लइके जवन भेदभाव लड़की के बचपन मा षुरू हुआ थै, आगे तक मेहरारून का वही कै भरपाई करै का परा थै।
सरकारी आंगनवाड़ी अउर मिडे डे मील योजना चलाये बाय जेसे मेहरारू-बच्चा कुपोषित न हुवै लकिन कहूं तौ आंगनवाडि़यन मा नियम से पंजीरी अउर पोषाहार मिलबै नाय करत
अउर जहां मिलबौ करा थै हंुआ पोषाहार कै क्वालिटी अउर मात्रा ठीक नाय रहा थै। मध्याह्न भोजन, जवन बच्चन के पोषाहार के ताईं बाय वहमा भी बहुत कमी पाई गै। जब जिए कै अधिकार हर नागरिक का संवैधानिक मौलिक अधिकार हुए तौ इन योजनाओं का पूरी तरह से लागू करै कै जिम्मेदारी अउर वकरी कमियन की र्ताइं जवाबदेही केकै बना
थै? जब स्थिति मा कौनौ सुधार नाय न तौ समय समय पै योजनाओं कै मूल्यांकन काहे नाय हुआ थै?
भेद भाव से शुरू कुपोषण का चक्र
पिछला लेख