चित्रकूट जिले के भरकोर्रा गांव में भूरी अपने दम पर रहती हैं। उसके घर और आंगन मिट्टी के बने है। भूरी के घर में एक अधूरा शौचालय है जिसमें आज चूल्हा जलाने वाली लकड़ियां रखी जाती हैं।
भूरी को सरकार की तरह से हर महिना 150 रूपये पेंशन मिलती है। उसके घर में एक टूटा-फूटा, प्लास्टिक की पन्नियों से ढका भट्टा है जिसमें वो गेहूं और बाजरा भूनती है।
भूरी के पास कभी दो बीघा जमीन हुआ करती थी। लेकिन उसने उसे अपने बेटे की दवा कराने के लिए बेच दिया। उसका बेटा अब हरियाणा, सोनीपत में काम कम करता है।
सरकार द्वारा निर्मल स्वच्छ भारत अभियान के तहत भूरी के घर में शौचालय बनवाया गया था लेकिन उसकी तीन दीवार खड़ी करने के बाद उसका निर्माण आज तक अधूरा है। वहां कोई गड्ढा नहीं बनाया गया। हार कर भूरी ने वहां लकड़ियां रख लीं। भूरी शौच के लिए बाहर खेतों में और सड़क पार जाती हैं। कई बार जब बरसातों में पानी भर जाता है तब खासी समस्या हो जाती है।
भूरी के पास सोने के लिए एक पतले लोहे का पलंग है जिस पर वो सोती है लेकिन जब बारिश के दिनों में, भारी बारिश के समय सारा गन्दा पानी और कीचड़ यहाँ भर जाता होगा तब वो कहाँ सोती होंगी? तब भूरी मुस्कुरा कर कहती हैं ‘यहीं, गंदे पानी के बीच।’
साभार: पारी
भूरी और तीन दीवारों वाला शौचालय…
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