जिला महोबा, शहर महोबा आ गए ठण्ड के दिन एसे में भुजी मछली खाबे को स्वाद ही अलग हे। बेसे तो आपने भुजी मछली सोमपत खाई हुए लेकिन जो तैयार होके बाजार तक केसे पोचत बाके बारे में आज हम अपने ही बुंदेलखंड की हरकुईया से जानत।
हरकुईया ने बताई के हम जो धंधो बचपन से कर रए जब हमाये एकउ मोड़ी मोड़ा नई हते हमाओ ब्याओ भओ और रुपईयन की परेशानी भई सोई हम जोई धंधो करन लगे ते। जब हमने जो काम करबो शुरू करो तो।
जब एक चबन्नी की एक किलो मछली आत ती। और एक रुपईया में बड़ी वाली मछली आ जात ती। अब हम अस्सी रुपईया किलो खरीदत हे और सौ रुपईया किलो बेचत हे। पहले काटके इनके धो फिर भूजो और फिर सुखाओ सो छह सौ ग्राम बचती एक किलो की। तो का ज्यादा रुपईया मिलत।
घनश्याम ने बताई के कोऊ मसाले की बना के खात तो कोऊ एसे ही नमक के संगे खा लेत और अगर कोउ को बाहर जाने तो भुजी मछली ले जाओ खाना के संगे तो ख़राब नइ होती। एक दो दिन चल जाती। हमने और भी देखि केऊ जघा भुजी मछली छतरपुर में मऊ में नौ गांव में भोत जघा देखी भुजी मछली। काय के आदमी ज्यादातर ठण्डन में ही ज्यादा खात।
और मछली में बोहतई ज्यादा विटामिन पाई जात। मछली को खाबे वाले आदमी को कबहु कोनऊ बड़ी बीमारी नइ हो सकत। लेकिन कोऊ कोऊ मछली खाबो भी पसंद नइ करत। जबकि सबसे ज्यादा फायदेमंद हे मछली।
मछली खाबे से बच्चन को कबहु रतौधि रोग नई हो सकत और अगर कोऊ को टी बी की बीमारी होबे तो बामे भी मछली भोत फायदेमंद बताई जात।
रिपोर्टर- श्यामकली
09/12/2016 को प्रकाशित