सुप्रीम कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में तेलुगु कवि वरवर राव सहित पांच लोगों की गिरफ्तारी पर सवाल उठाए हैं और महाराष्ट्र सरकार और पुलिस को नोटिस दिया है।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने गिरफ्तार सभी पांचों मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जेल नहीं भेजने का निर्देश देते हुए छह सितंबर तक घर में ही पुलिस की निगरानी में नजरबंद रखने का आदेश दिया है।
इतिहासकार रोमिला थापर, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक व देविका जैन सहित अन्य बुद्धिजीवियों की याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की बेंच ने भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में नौ माह बाद इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर सवाल उठाए।
वरवर राव, वेरनोन व अरुण फरेरा को पुणे कोर्ट में पेश किया गया। कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मद्देनजर आरोपियों को घर ले जाने को कहा। दिल्ली हाईकोर्ट ने गौतम की गिरफ्तारी की मंशा पर सवाल उठाए। सुधा को फरीदाबाद की कोर्ट ने ट्रांजिक रिमांड पर सौंपा था। लेकिन पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने ट्रांजिट रिमांड के आदेश पर तीन दिन के लिए रोक लगा दी थी।
बता दें, यह गिरफ्तारी पिछले साल 31 दिसंबर को भीमा-कोरेगांव में एल्गार परिषद की सभा के दौरान हुई हिंसा मामले में की गई। इन पर वैमनस्यता बढ़ाने और सद्भावना को नुकसान पहुंचाने का आरोप है।
पुणे के ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर शिवाजीराव बोडखे ने दावा किया कि उनके पास पुख्ता सबूत हैं कि माओवादियों ने बड़े नेताओं को मारने की साजिश रची थी। गिरफ्तार लोगों के संबंध कश्मीरी अलगाववादियों से हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वाल्व है। सेफ्टी वाल्व की सुविधा नहीं देंगे तो प्रेशर कुकर फट जाएगा।
गौतम की गिरफ्तारी के खिलाफ दायर याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस से पूछा कि गिरफ्तारी का आधार बताने वाले दस्तावेजों का मराठी भाषा से अनुवाद क्यों नहीं किया गया। ये दस्तावेज नवलखा को क्यों नहीं दिए गए।
वरवर राव सहित पांच लोगों की गिरफ्तारी के विरोध में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा सहित अन्य राज्यों में प्रदर्शन किया गया है। कोलकाता में नुक्कड़ सभाएं की गई हैं। हैदराबाद में विरोध प्रदर्शन के साथ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने गिरफ्तारी दी।
नागरिक अधिकार समूह पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स की ओर से जारी बयान में नवलखा ने कहा, “यह पूरा मामला प्रतिशोधी और कायर सरकार द्वारा राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ राजनीतिक चाल है, जो भीमा-कोरेगांव के असली दोषियों को बचाना चाहती है।’