देश की लाखों महिलाओं को गर्भनिरोधक गोलियों के बारे में कोई जानकारी नहीं है जिस वजह से वह गर्भवती हो जाती हैं। एक करोड़ से अधिक महिलाएं अपने परिवार के डर की वजह से छुप-छुपा कर गर्भपात करा लेती हैं। इससे परिवार नियोजन की जरूरतों से निपटने में सरकार की नाकामी का पता चलता है।
जिलास्तरीय घरेलू एवं फैसिलिटी सर्वेक्षण 2007-2008 के अनुसार, परिवार नियोजन कार्यक्रम नसबंदी को बढ़ावा देता है जिससे पांच में से एक महिला को देश में गर्भनिरोधक गोलियों की जरूरत रहती है।
गर्भनिरोधक गोलियों के सेवन से अनचाहे गर्भ से बचने की प्रक्रिया से देश में कुल प्रजनन दर प्रतिस्थापन दर से नीचे चली गई है। यह वह स्तर है जहां न आबादी बढ़ेगी और न घटेगी।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुमान के मुताबिक, देश की प्रजनन दर 2.3 है, लेकिन यदि महिलाओं को गर्भनिरोधक गोलियों दी जाए और सुरक्षित गर्भपात का आश्वासन दिया जाए तो प्रजनन दर 1.9 तक गिर सकती है। यही समान दर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और स्वीडन में भी है।
एक गैर सरकारी संगठन ‘द पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा ने कहा, ‘यदि सरकार अनचाहे गर्भ को रोकने पर ध्यान देती है और महिलाओं को सही फैसला लेने में सशक्त करें तो देश की आबादी गिरना शुरू हो जाएगी।’
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, देश में अनुमानित रूप से दो से पांच फीसदी महिलाओं को अपूर्ण गर्भपात को पूरा करने और रक्त के बहाव को नियंत्रित करने के लिए शल्य चिकित्सा की जरूरत है।
दवाइयों की बिक्री के आधार पर दर्ज और अनुमानित गर्भपातों के बीच अंतर से पता चलता है कि महिलाएं मुख्य रूप से कन्या भ्रूणों का गर्भपात करा रही हैं। 2011 में देश का लिंग अनुपात 1000 पुरूषों पर 940 महिलाएं थीं।