स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था विश्व स्वास्थ्य संस्था की ’द हैल्थ वर्कफोस इन इण्डिया’ नाम की रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में आधी से ज्यादा और गांवों में अठराह दशमलव आठ प्रतिशत ऐलोपैथिक डाॅक्टर बिना चिकित्सा योग्यता के हैं।
यह रिपोर्ट 2001 की जनगणना के आंकड़ों पर आधारित है, जिसके अनुसार इकत्तीस प्रतिशत ऐलोपैथिक डाॅक्टरों की शैक्षिक योग्यता सेकेंडरी स्कूल से ऊपर नहीं है जबकि सत्तावन प्रतिशत के पास चिकित्सा योग्यता नहीं है।
जबकि दूसरी ओर अड़तीस प्रतिशत महिला स्वास्थ्यकर्मचारी पुरूष स्वास्थ्य कर्मचरियों की तुलना में अधिक शैक्षिक और चिकित्सा योग्यता रखती हैं। साथ ही अड़तीस प्रतिशत ऐलोपैथिक पुरूष डाॅक्टरों की तुलना में सड़सठ प्रतिशत महिला डाॅक्टरों के पास चिकित्सा योग्यता है।
आयुर्वेदिक, ऐलोपैथिक, होम्योपेथिक और यूनानी डाॅक्टरों को मिलकर भी एक लाख जनसंख्या पर अस्सी डाॅक्टर हैं। नर्स और दाइयों की संख्या एक लाख पर केवल इकसठ है। इसमें चिकित्सा योग्यता वाली नर्स और दाइयों को देखें तो यही संख्या दस गुना घटकर छह प्रति लाख हो जाती है।
राज्यों के जिलों के स्वास्थ्य कर्मचारियों की संख्या में बड़ा अन्तर है, जिसमें भारत की शिक्षित नर्सों का अड़तीस दशमलव आठ प्रतिशत केरल राज्य में है, जबकि केरल की जनसंख्या देश की कुल जनसंख्या की तीन दशमलव एक प्रतिशत है। ऐसे ही तरह पश्चिम बंगाल में होम्योपैथिक डाॅक्टर तीस दशमलव छह प्रतिशत हैं जबकि उसकी जनसंख्या साथ तीन दशमलव आठ प्रतिशत है।
दांत के डाॅक्टर की संख्या एक लाख लोगों में दो दशमलव चार है, जबकि 2001 में अट्ठावन जिलों में एक भी दांत का डाॅक्टर नहीं था।