लक्ष्द्वीप और मेघालय भारत के सभी 35 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सबसे बेहतर स्तिथि में हैं क्योंकि यहाँ रहने वाली महिलाओं के पास उनकी खुद की मालिकाना जमीन उनके पास है।
जबकि पंजाब और पश्चिम बंगाल इस मामले में सबसे खराब हैं।
2011 की जनगणना और 2015-16 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, इन राज्यों में घर और जमीन के मालिकाना अधिकार महिलाओं के हाथ में हैं।
प्रतिशत के रूप में देखें तो औसतन, 12.9% भारतीय महिलाएं जमीनी हक रखती हैं।
जबकि, यदि दक्षिणी राज्यों में में देखा जाये तो महिलाओं के पास 15.4% जमीन होती है और पूर्वोत्तर राज्यों में, 14.1% महिलाओं के पास जमीनी अधिकार होते हैं।
वहीं, उत्तरी राज्यों में 9.8% और पूर्वी राज्यों में 9 .2% महिलाएं जमीनी अधिकार रखती हैं।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, गरीबी समाप्त करने के लिए, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने, लिंग समानता प्राप्त करने, और शहरों और मानव बस्तियां को एक बनाने के लिए महिलाओं के पास जमीनी अधिकार होना जरुरी है. यह उनके विकास और जीवन चक्र को बेहतर बना सकता है।
छठी पंचवर्षीय योजना (1980-85) के बाद से भूमि और घर को बांटने के दौरान, सरकार ने पुरुषों और महिलाओं को बराबर हक़ देने का विचार रखा था जो अधिकतर राज्यों में नाकाम रहा।
संयुक्त राष्ट्र (खाद्य और कृषि संगठन) के संयुक्त राष्ट्र संघ (एफएओ) के लिंग और भूमि अधिकारों के आंकड़ों के अनुसार, महिलाएं भारत की कृषि में एक तिहाई (32%) की भागीदारी देती हैं जो 55-66% खेती के उत्पादन में योगदान देता हैं।
केंद्र सरकार के भूमि प्रशासन सूचकांक के अनुसार, भारत में महिलाओं का जमीन पर मालिकाना हक केवल 12.8% है जो चीन के 17% की तुलना में बेहद कम है।
कृषि जनगणना 2011 में दर्ज आंकड़ों के आधार पर लक्षद्वीप (41.0%), मेघालय (34.4%) और अंडमान निकोबार (2 9 .7%) महिलाओं के पास सबसे ज्यादा जमीनी अधिकार हैं।
देश के बाकी हिस्सों की तुलना में दक्षिणी राज्यों में महिलाएं भूमिपति हैं. जमीनी अधिकार से सम्बंधित बनी एक सूची में दक्षिणी राज्य पहले स्थान पर है और आंध्र प्रदेश 17.2% के साथ चौथे नम्बर पर है।
जबकि, मध्य प्रदेश (8.6%), राजस्थान (7.1%) और उत्तर प्रदेश (6.1%) जैसे बड़े कृषि राज्यों में पंजाब (0.8%) सबसे नीचे हैं।
फोटो और लेख साभार: इंडियास्पेंड