सरकारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में पैदा हुए 1000 लड़कों पर लड़कियों की संख्या में भारी गिरावट देखने को मिली है। लिंग अनुपात के आधार पर पिछले 65 सालों में लड़का और लड़की का अनुपात क्रमशः 946 से 887 रहा है जो प्रति व्यक्ति आय के 10 गुना बढ़ने पर हमारे सामने है। पिछले कुछ वर्षों में भारत के बाल लिंग अनुपात और प्रत्येक 1,000 लड़कों पर छह लड़कियों के कम होने में और गिरावट होती आई है। आज़ादी के बाद, वर्ष 2011 में यह 914 था जो अब तक का सबसे कम था।
समाज में यह बात देखने को मिलती है कि यहाँ बेटे अधिक वरीयता डी जाती है फिर वो भले ही एशिया, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका का समाजिक स्वरूप क्यों न हो, यहाँ बढ़ती समृद्धि और प्रजनन दर में गिरावट में भी यही सोच आगे रहती है।
चूँकि आय बढ़ने से साक्षरता में भी बढोत्तरी हो रही है तो लोग लिंग चुनने की प्रक्रिया भी अपनाना रहे हैं। भारत का सालाना प्रति व्यक्ति आय 72,889 रुपये है जबकि इसके इतर लगातार प्रजनन दर यानी लड़कियों का पैदा होना कम होता जा रहा है। 1960 में यह 5.9 थी जो 2012 में 2.5 हो गई। इसके बाद 2014 में यह दर 2.4 तक गिर गई।
अन्य एशियाई देशों में इसी तरह के आंकड़ो पर विचार करने पर पता लगता है कि जहां माना जाता है कि केवल बेटे ही परिवार को आगे बढ़ा सकते हैं और परिवार के लिए दहेज के रूप में मोटा धन कमा सकते हैं।
केंद्रीय खुफिया एजेंसी के वर्ल्ड फैक्टबुक के अनुसार, 2015 में चीन की प्रति व्यक्ति आय $ 7,924.7 थी. जबकि भारत की $ 1,581.6 रही. जबकि लिंग अनुपात के अनुसार, यह संख्या 869 रही जो विश्व में सभी अन्य 971 अनुपात की तुलना में सबसे कम आंकी गई।
साभार: इंडियास्पेंड