पहले एक अच्छी खबर, वर्ष 2015 में आंकड़ों के अनुसार उस वर्ष के लिए सरकार द्वारा 39 शिशु मृत्यु दर के अनुमान से दो अंक कम है। इन आंकड़ों में पिछले 25 वर्षों में 53 फीसदी की गिरावट हुई है। और अब एक बुरी खबर, शिशु मृत्यु दर कम करने का लक्ष्य 67 फीसदी था।
संयुक्त राष्ट्र के परामर्श से वर्ष 2015 में सहस्राब्दि विकास लक्ष्य (एमडीजी) के तहत भारत ने इस संबंध में 27 का आंकड़ा निर्धारित किया था। वर्तमान में यह संख्या 10 से कम है। भारत ने अब भी 30 की आईएमआर लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया है, जिसे सरकार ने वर्ष 2012 के लिए निर्धारित किया था।
भारत की वैश्विक स्थिति जानने के लिए वर्ष 2015 की 37 की औसत आईएमआर की तुलना कम और मध्यम आय वाले 154 देशों के 35, 26 उत्तर अमेरिकी देशों के 5 और यूरो क्षेत्र में 39 राष्ट्रों के लिए 3 की आईएमआर के साथ होती है।
नमूना पंजीकरण प्रणाली (एसआरएस) बुलेटिन से नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में आईएमआर में व्यापक रुप से भिन्नता देखी गई है। रिपोर्ट के अनुसार, छोटे और अधिक साक्षर राज्यों का आईएमआर अमीर देशों के आईएमआर के करीब या उनसे बेहतर है, जबकि बड़े और गरीब राज्यों में, गरीब देशों की तुलना में अधिक बच्चों की मृत्यु की सूचना दी गई है। यह निश्चित रुप से स्वास्थ्य के क्षेत्र में असमान प्रकृति का संकेत है।
वर्ष 2015 विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, 36 भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (यूटीएस) में से सबसे कम आईएमआर गोवा और मणिपुर में दर्ज किए गए हैं। यहां प्रति 1,000 जन्मों पर नौ बाल मृत्यु के आंकड़े हैं।
इसके विपरीत, मध्यप्रदेश में प्रति 1,000 जन्मों पर 50 शिशु मृत्यु के साथ सबसे बद्तर आईएमआर की सूचना दी गई है। ये आंकड़े इथोपिया और घाना से भी बदतर और आपदा-भरे हैती (52) और अस्थिर जिम्बाब्वे (47) की तुलना में मामूली रूप से बेहतर है, लेकिन यह वर्ष 2014 के 52 के दर से बेहतर हैं।
उत्तराखंड एकमात्र ऐसा राज्य है जहां आईएमआर के बिगड़ने की सूचना मिली है। वर्ष 2014 में यहां प्रति 1,000 जन्मों में से 33 शिशु मृत्यु के आंकड़े थे, जो वर्ष 2015 में 34 हुए हैं।
भारत में शिशु लड़कों की तुलना में शिशु लड़कियों की अधिक मृत्यु जारी है और नए आंकड़ों के अनुसार आईएमआर के अंतराल में कोई कमी नहीं हुई है।
शिशु लड़कों के लिए प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 35 मृत्यु का आईएमआर है, जबकि शिशु लड़कियों के लिए प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 39 का आईएमआर है।
वर्ष 2015 में, आठ राज्यों का आईएमआर भारतीय राष्ट्रीय औसत से कम है। इनमें सात गरीब राज्य शामिल हैं, जिन्हें विशेष ध्यान देने के लिए अलग किया गया है, जिन्हें इम्पाउअर्ड एक्शन ग्रूप (इएजी) कहा जाता है। बता दें कि इसमें इएजी का एक और राज्य झारखंड शामिल नहीं है, जबकि मेघालय का नाम इसमें शामिल है। इन राज्यों (इएजी राज्यों में बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, राजस्थान और असम शामिल हैं) में अधिक से अधिक औसत दर काफी हद तक लड़के और लड़कियों शिशुओं के लिए समान था।
फोटो और लेख साभार: इंडियास्पेंड
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