देश में पिछले दो दशकों से कम वेतन और मजदूरी में असमानता सकल घरेलू आय के 7% सालाना होने के बाद भी बनी हुई है। ये बात अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ की एक रिपोर्ट में सामने आई है। जबकि पिछले 1993 से 1994 और 2011 से 2012 के बीच वास्तविक वेतन में दुगनी वृद्धि हुई है। साथ ही मजदूरी के क्षेत्र में बड़े स्तर पर विभाजन और अनौपचारिकता बनी हुई है। जो अच्छे कार्य वातावरण और वृद्धि को रोकने का काम कर रही है।
इसी तरह महिलाओं के लिए औसत मजदूरी तेजी से बढ़ी है, वहीं पुरूष इस मामले में महिलाओं से पीछे हैं। पिछली रिपोर्ट में महिलाएं पुरुषों के मुकाबले यह निचले स्तर पर थी। 2017 में वैश्विक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में महिलाएं पुरुषों की तुलना में 67% कम कमाती थीं। लिहाजा इस बार इसमें आए बदलाव को सकारात्मक कहा जा सकता है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम ग्लोबल जेंडर डिफ्रेंस इंडेक्स 2017 की रिपोर्ट में भारत का विश्व में 108वें स्थान पर रहा था। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की वर्ल्ड वैज रिपोर्ट 2016-17 के अनुसार भारत में लिंग मजदूरी असमानता विश्व के सबसे खराब स्तर पर था। शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में कमाई के तरीके तेजी से बढ़े है। दिहाड़ी मजदूरों की कमाई बढ़ी, वहीं कर्मचारियों का वेतन में ये वृद्धि कम हुई है।
साभार: इंडियास्पेंड