भारत और पाकिस्तान दो ऐसे देश हैं जिनका नाम एक साथ लेते ही लोगों के मन में एक ही शब्द आता है – दुश्मनी। फिर चाहे वो साल 1965 की जंग हो या क्रिकेट और हौकी का मैदान। 1947 में भारत और पाकिस्तान दो अलग देशों में बंट गए। तब से शान्ति का वातावरण बनाने की कई कोशिशें की गईं पर सड़सठ साल पुराना तनाव आज भी जीवित है।
अगस्त 2013 में सीमा पर हुए हमलों के बाद देष में कड़वाहट का माहौल है। सरकार पर पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाने और इस घटना का कड़ा जवाब देने का दबाव है। पहला हमला पाकिस्तानी सेना ने किया था या आतंकवादियों ने – इस बात का अब तक पता नहीं चल पाया है। पर अब दोनों तरफ की सेनाएं एक दूसरे के सामने बंदूकें लिए खड़ी हैं। यहां तक कि प्रधानमंत्रियों के बीच की बैठक भी टल गई है।
सरकार किसी की भी हो, देश में आज पाकिस्तान के साथ कभी बिगड़ता, कभी संभलता ये रिष्ता नेताओं के लिए एक राजनीतिक मुद्दा बनकर रह गया है। 2014 के चुनावों में वोट पाने के लिए कांग्रेस की विरोधी पार्टियां इस मुद्दे को उछालेंगी और सरकार की नर्मी को जि़म्मेदार ठहराएंगी। कारोबार बढ़ाने के लिए अखबार और टी.वी. ज़ोर-शोर से इस तनाव के बारे में लिखेंगे और भारत के लोगों को 1999 के कारगिल यु़द्ध लगातार याद कराएंगे। और वोट पाने के लिए केंद्र सरकार राजनीतिक दबाव और लोगों में पैदा की गई नफरत के कारण गोलीबारी का आदेष दे देगी।
पर सीमा के दोनों तरफ लोग मरते रहेंगे क्योंकि सालों पुरानी दुश्मनी और नफरत को सुलझाने के लिए शान्ति से कोई बात नहीं करना चाहता है। अपने राजनीतिक मुनाफे और स्वार्थ के चलते बातचीत भी न करने देने में किसी की जीत नहीं है। बस हिंसा का ये मामला चलता रहेगा।