56 वर्षीय रुक्मणी रमानी खाद्य सुरक्षा अर्थशास्त्री हैं। उनका कहना है “कोई बात आपको प्रभावित करे इसके लिए आपको एक अर्थशास्त्री होने की जरूरत नहीं है। आपकी सोच धीरे-धीरे आपके काम के द्वारा इन बातों में परिवर्तन लाती हैं”।
एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (एमएसएसआरऍफ़) का केंद्रीय गलियारा एक बगीचे से आ कर जुड़ता है। यह बगीचा भारत की विभिन्न वनस्पतियों से सजा है। जिसमें तटीय, रेगिस्तान, आर्द्रभूमि आदि क्षेत्रों की हर तरह की वनस्पतियां मिल जायेंगी। हालांकि क्षेत्र के हिसाब से यह काफी छोटा है लेकिन इसकी बनावट से पूरा एमएसएसआरऍफ़ हवादार रहता है।
संस्थापक और वैज्ञानिक एम एस स्वामीनाथन द्वारा शुरू किया गया यह संस्थान एक एनजीओ है जो ग्रामीण और कृषि विकास के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी का उपयोग करता है। एमएसएसआरऍफ़ वेबसाइट के अनुसार, एमएसएसआरऍफ़ एक ‘गरीब-समर्थक, महिला-समर्थक और प्रकृति-समर्थक दृष्टिकोण’ को ले कर चलने वाला संस्थान है।
रुक्मणी यहां पिछले 15 सालों से यहाँ काम कर रही हैं। वह एमएसएसआरऍफ़ के सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में से एक खाद्य सुरक्षा में अनुसंधान और विकास का कार्य देखती हैं। यही नहीं, रुक्मणी गरीब परिवारों के लिए पर्याप्त भोजन पाने के अधिकार से संबंधित प्रोग्राम बना रही है जो आसान काम नही है।
रुक्मणी का कहना है कि गरीब परिवारों को अपने दो वक़्त के भोजन के लिए जितनी मेहनत करनी पड़ती है परिणाम उसके बिलकुल विपरीत निकलता है। भारत के खाद्य सुरक्षा योजना के अनुसार गरीब परिवारों तक सस्ते दामों में खाद्य पहुंचे चाहिये लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा।
रुक्मणी ने भारत के सौ से ज्यादा गांवों का भ्रमण कर उनकी खाद्य संबंधी समस्याओं को समझा है। वह बताती हैं, भारत में तीन प्रकार की भूख मौजूद है। एक, कैलोरी से जुड़ी, दूसरी, प्रोटीन से जुड़ी और तीसरी, पोषक तत्वों से जुड़ी।
इसके लिए रुक्मणी किसानों और गांव वालों के लिए कार्यक्रम बना रही हैं जिसके द्वारा वह निजी तौर पर अपने लिए दालें, अनाज और रोजमर्रा की सब्जियां उगा सकें और सभी प्रकार की भूख से निजात पा सकें। उनका योगदान लगातार सराहा जा रहा है। इसके लिए रुक्मणी अक्सर देश-विदेश की यात्रायें भी करती हैं।
फोटो और लेख साभार: द लाइफ ऑफ़ साइंस