भारतीय पूंजी बाजार पर कच्चे तेल की बढ़ी कीमतों के अलावा मुद्रा और चालू खाते कम होने के प्रभाव का असर देखने को मिल रहा है।
फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स (एफपीआई, विदेशी निवेशकों) ने अप्रैल और मई के बीच पिछले 10 सालों में भारतीय बाजार से सबसे ज्यादा पैसे निकाले हैं।
एक अंग्रेजी अख़बार के अनुसार, साल 2018 के शुरूआती 5 महीनों में विदेशी निवेशकों ने 4.4 बिलियन डॉलर (करीब 32,078 करोड़ रुपए) भारतीय कैपिटल मार्केट से निकाले हैं।
अप्रैल में विदेशी निवेशकों के भारतीय मार्केट से पैसे निकालने का आंकड़ा 2.35 बिलियन डॉलर (करीब 15,561 करोड़ रुपए) रहा।
जबकि मई में यह आंकड़ा 4.4 बिलियन डॉलर (29,775 करोड़ रुपए) पर पहुंच गया।
भारतीय पूंजी बाजार से विदेशी निवेशकों के पैसे निकालने का यह आंकड़ा 10 सालों का उच्चतम स्तर है।
इससे पहले 2008 में विदेशी निवेशकों ने भारतीय पूंजी बाजार से 9.3 बिलियन डॉलर (करीब 41,216 करोड़ रुपए) निकाले थे।
वहीं 2016 में दूसरी बार एफपीआई की रकम बढ़ी लेकिन तब आंकड़ा 3.19 बिलियन डॉलर (23,079 करोड़ रुपए) था।
2008 में ग्लोबल फाइनेंशल क्राइसिस का असर भारतीय पूंजी बाजार पर पड़ा था और यही वजह थी कि विदेशी निवेशकों ने पैसे निकाले थे। हालांकि इस बार का विदेशी निवेशकों का पैसा खीचने का तरीका 2008 के आंकड़ों से बिल्कुल अलग है।
निवेशकों द्वारा 2018 में सिर्फ 5 फीसदी यानी करीब 1,599 करोड़ रुपए शेयर बाजार से निकाले गए हैं। जबकि 2008 में 52,987 करोड़ रुपए शेयर बाजार से निकाले गए थे।