भारतीय रिजर्व बैंक पहले ही मौजूदा वित्तीय वर्ष में वृद्धि दर के कम रहने जाने की भविष्यवाणी कर चुका था।
केंद्रीय बैंक के अनुसार, वृद्धि दर 7.3% के कम होकर 6.7% रह जाएगी. खरीफ के खाद्यान्न उत्पादन में कमी के अनुमान, जीएसटी से विनिर्माण क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव, निवेश गतिविधियों में सुधार न होने और उपभोक्ता और कारोबारी धारणा नरम रहने से 2017-18 की प्रथम तिमाही में समग्र वृद्धि के धीमा पड़ जाने के चलते केंद्रीय बैंक ने यह अनुमान जताया है।
जिस दिन केंद्रीय बैंक ने अर्थव्यवस्था की यह धुंधली तस्वीर पेश की थी, उसी दिन प्रधानमंत्री मोदी ने दावा किया है कि यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान आठ मौकों पर जीडीपी की वृद्धि दर मौजूदा स्तर 5.7% (प्रथम तिमाही: 2017-18) से नीचे गई. यह तुलना बेतुकी है क्योंकि जनवरी, 2015 के बाद से ही जीडीपी के आकलन का तरीका बदल चुका है।
दरअसल, प्रथम तिमाही : 2012-13 और चौथी तिमाही : 2013-14 के मध्य की आठ तिमाहियों में जीडीपी की वृद्धि दर 4.3% से 5.2% के बीच रही. लेकिन नये अनुमानों के अनुसार उन आठ तिमाहियों की चार तिमाहियों में जीवीए में वृद्धि 5.7% से कहीं ज्यादा थी।
2011-12 की दूसरी तिमाही में यह 7% थी और 2013-14 की प्रथम और तीसरी तिमाही के दौरान 6.3% और 7.1% के बीच रही. तो क्या प्रधानमंत्री जीडीपी आकलनों की पुरानी श्रृंखला का उल्लेख कर रहे थे?
सवाल यह है कि ‘सबसे तेज गति से विकास करती अर्थव्यवस्था’ का दावा क्यों? वह भी उस सूरत में जब भारत के समतुल्य आर्थिक हैसियत वाले देशों में निवेश दर भारत की तुलना में ऊंची है।
आरबीआई पहले ही निर्यात की तुलना में आयात के तेजी से बढ़ने पर अपनी चिंता से अवगत करा चुका है। साथ ही, हाल के समय में विदेशी पूंजी आगम में ऋण के बढ़ते अनुपात के बारे में भी कह चुका है। चालू खाते की चौड़ी होती खाई को विदेशी ऋण से पाटने का ही नतीजा था कि यूपीए के शासनकाल में जुलाई–अगस्त, 2013 में भारतीय अर्थव्यवस्था भुगतान संतुलन के संकट में फंस गई थी। जाहिर है कि इस मोर्चे पर कोताही से भारत का संकट बढ़ सकता है।
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘भारत में विकास दर में सुस्ती आई है, जिसका कारण सरकार द्वारा करंसी में बदलाव (नोटबंदी) और साल के बीच में लागू किया गया आर्थिक सुधार जीएसटी है, जिससे अनिश्चितता की स्थिति बनी।’ जीएसटी को 1 जुलाई से लागू किया गया था। भारत की विकास दर में सुस्ती के बीच वैश्विक ग्रोथ बढ़ेगी और चीन तेजी से बढ़ते हुए भारत को पछाड़ 6.8 प्रतिशत की विकास दर रहेगी।
फोटो और लेख साभार: इंडियास्पेंड