पूर्ण बहुमत का दौर 2014 के लोकसभा चुनाव से शुरू हुआ, जब भाजपा ने विपक्ष दलों को तहस-नहस कर दिया था। वही दौर पिछले दो साल के विधान सभा चुनाव में भी देखने को मिल रहा है, जैसे दिल्ली में अरविन्द केजरीवाल की जीत और बिहार में नितीश और लालू का महागठबंधन।
अब एक बार फिर, पांच राज्यों में हुए विधान सभा के चुनाव में भी पूर्ण बहुमत दिख रहा है।
पत्रकारों और विशेषज्ञों की भविष्यवाणी के बाद भी तमिलनाडु में जयललिता ने भारी जीत हासिल की है। पश्चिम बंगाल में भी ममता बनर्जी ने कांग्रेस और वामपंथ के गठबंधन का नामो-निशान मिटा दिया है, जबकि असम में भाजपा ने पहली बार अपना खाता खोला और तरुण गोगोई की सरकार को हिला दिया। केरल में भी कांग्रेस के ओमन चाड़ी के खिलाफ यही परिणाम देखने को मिला, जहां वामपंथ ने विधान सभा में बड़ा हिस्सा वापस हासिल किया है। इस बार के चुनाव को देखकर भी यह लग रहा है कि मतदाता पार्टी को ‘अच्छी सरकार’ के बदले पूर्ण बहुमत देना पसंद करते हैं।
‘अच्छे दिनों’ की लहर अभी देश भर में घूम रही है और इसलिए भी 2014 के बाद हुए हर विधान सभा चुनाव राजनैतिक दलों के लिए महत्वपूर्ण बन गये।
एक तरफ मतदाताओं ने ममता बनर्जी और जयललिता की सरकार को बार-बार मौका दिया है, वहीं दूसरी तरफ, वोटरों ने सोनिया और राहुल गांधी की राजनीती को ख़ारिज किया हैं। केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और असम में कांग्रेस पार्टी कमजोर बनती जा रही हैं। यह भी कहा जा सकता है कि जिस पार्टी के साथ कांग्रेस ने गठबंधन भी किया, वो उनके लिए फायदेमंद साबित नहीं हुआ। जैसे वामपंथ ने केरल में कांग्रेस का जमकर विरोध किया और बंगाल में उनसे हाथ मिलाया लेकिन इसका लाभ ममता ने उठाया। 2014 के चुनाव के बाद कांग्रेस ने सुधार की कोशिश की। दिल्ली और बिहार के चुनाव के बुरे प्रदर्शन के बाद भी कांग्रेस ने यही बात कही। अभी के बुरे प्रदर्शन के बाद भी कांग्रेस एक बार फिर यही बहाना बना रही है।
कांग्रेस राजनीति के ऐसे देहलीज़ पर खड़ी हैं जहाँ उन्हें अपने मूल आदर्शों का आकलन करना होगा और शायद कांग्रेस को सोनिया, प्रियंका और राहुल गांधी से हटकर सोचना होगा!
भाजपा के लिए भी चुनाव के परिणाम कभी अच्छे रहे हैं तो कभी बुरे। भाजपा ने असम में पहली बार खाता खोला है, जिसके बाद भाजपा वास्तव में राष्ट्रीय पार्टी बन गयी है क्योंकि हर राज्य में इनका कदम हैं।
लेकिन इन चुनाव के असली हीरो का खिताब ममता बनर्जी और जयललिता को मिलना चाहिए। बिना किसी गठबंधन के और बिना केंद्र सरकार की मदद लिए, दोनों नेताओं ने अपने मतदाताओं को अच्छे दिन दिए हैं और आगे के लिए आश्वासन भी दिया है।
भाजपा ने असम में खोला खाता, ममता और जयललिता ने लिखा इतिहास
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