मड़ई गर्मी से मरैं या पियास से, अनियमित बिजली कटौती तौ रूकै वाली निहाय। या ढर्रा अपनावैं वाला बिजली विभाग जनता के ताना सुनै का मजबूर है। काहे से राज्य सरकार के रणनीति का पालन करब भी विभाग के मजबूरी है। उत्तर प्रदेश राज्य का पिछड़ा इलाका बुन्देलखण्ड अउर बुन्देलखण्ड का पिछड़ा इलाका ग्रामीण क्षेत्र मा या समस्या नई बात न होय। कहैं का मतलब जब बुन्देलखण्ड के शहरी इलाकन मा बिजली कटौती धड़ल्ले से कीन जात है तौ सोचै वाली बात या है कि गांव का हाल का होई?
जहां सरकार बड़े-बड़े राज्य अउर शहरन मा 24 घण्टा बिजली देत है। बड़ी-बड़ी फैक्ट्री अउर मिलैं चलत हैं होंआ बुन्देलखण्ड के जनता बिजली के मारामारी से रोवत है। मुश्किल से बारह घण्टा भी बिजली नहीं मिलत आय। या सब देख के तौ साफ नजर आवत है कि सरकार का जनता का दर्द नहीं देखात आय। वहिका तौ आपन आमदनी से मतलब है। काहे से सरकार उंई कम्पनी अउर मिलन से ज्यादा से ज्यादा कमाई करत है। का जनता से बिजली बिल के वसूली नहीं कीन जात आय? हां शायद या बात भी है कि जेतना कीमती रूपिया फैक्ट्री अउर मिलन का है वतना कीमती रूपिया आम जनता का निहाय। बिजली कटौती आम जनता के बीच से होई तौ सरकार का कुछ बिगड़ै वाला निहाय। विभाग बिल तौ भरा ही लेई। यहै कारन है कि बुन्देलखण्ड के इलाका मा बिजली के मारामारी होत है।
बुन्देलखण्ड मा ही काहे होत बिजली कटौती?
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