दिल्ली की कई बस्तियों में बुंदेलखंड से पलायन कर लोग आ बसे हैं। उन्ही बस्तियों में से एक है रोहिणी इलाके की रजापुर गाँव की बस्तियां। खबर लहरिया की कविता निकल पड़ी हैं ऐसे ही लोगों से मुलाकात करने जो अपने गाँव छोड़ कर दिल्ली आ बसे हैं। वो यहाँ क्या कर रहे हैं और कैसे अपनी जीविका चला रहे हैं यह जानने के लिए कविता लोगों से मिली।
मऊ की रहने वाली कौशल्या देवी पिछले बारह सालों से रजापुर में रह रही हैं। वह यहाँ खाना बनाने का काम करती हैं। बुंदेलखंड में काम न होने की वजह से उन्होंने अपना घर, अपना गाँव छोड़ा। उनके साथ उनका परिवार अब दिल्ली में किराये के मकान में रहता है।
रजापुर में ही रहने वाली चुनकी दलित जाति की हैं और उन्हें अफ़सोस है कि उनकी जाति के कारण ही उन्हें बुंदेलखंड से पलायन करना पड़ा। वह कहती हैं कि मैं 22 साल पहले यहाँ आई और बहुत रोई थी, यह सोच कर कि दिल्ली जैसे बड़े शहर में कैसे रहूंगी और क्या करुँगी। मुझे लगा जैसे मैं अपनी दुनिया छोड़ कर एक अलग दुनिया में आ बसी हूँ।
वो आगे कहती हैं, हम आज दिल्ली छोड़ने को तैयार है यदि हमें वहां रोजगार मिल जाये और सरकार हमारी जरूरतों को समझे।
वहीँ, कुमकुम अपने पति की बीमारी की वजह से 6 साल पहले बुंदेलखंड छोड़ कर दिल्ली आ बसी थीं। वह कहती हैं, उनकी बीमारी में लम्बा समय लगा और इसी बीच हमने अपने बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूल में करा दिया और तब से हम यहीं रह रहे हैं। अब सोचते हैं कि जब सब यहाँ हो ही गया है तो फिर से क्यों भटकना।
कुमकुम अपने गाँव में होने वाले त्यौहारों को बहुत याद करती हैं। उन्हें यहाँ का अकेलापन और अपने में रहने वाली लोगों की सोच पसंद नहीं है।
रजापुर में पलायन कर रहने वाली आधी आबादी दूसरों के घरों में काम करती है या मजदूरी कर अपना परिवार चला रही है।
बुंदेलखंड छोड़ दिल्ली आ बसे लोगों की दास्ताँ…
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