बांदा से तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित बुंदेलखंड की शान कहे जाने वाला ‘भूरागढ़ किला’ आज गुमनामी के अंधेरे में खोता जा रहा है।केन नदी के पास खड़ा यह पुराना किला आज याद बन कर रह गया है। भूरागढ़ बुंदेला राजाओं की निशानी है। यह किला सत्रह सौ छियालीस सदी का है। कहा जाता है कि इस किले को जीतने के लिए जिन शासकों ने लड़ाई की उनकी कब्रें आज भी इस किले के अन्दर पायी जाती हैं। इस किले का इतिहास इसे बलिदान, देशभक्ति और समानता का प्रतीक मनाता है।
पहले लोग दूर-दूर से यहाँ अक्सर शामें गुजारने आया करते थे लेकिन आज भूरागढ़ किला सुनसान पड़ा है। सरकारी संरक्षण में होने के बाद भी यह किला बदरंग नजर आता है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि इस किले में राजाओं का एक कुआँ पुराना होने के कारण अपनी छवि खोता जा रह था। जिसे राज्य सरकार ने मरम्मत कर ठीक कराया था। लेकिन उसमें आज तक पानी नहीं भरवाया गया, जिसके कारण वह कुआँ सूखे कूड़े का ढ़ेर बन गया है।
यह किला हाथी दरवाज़े के लिए भी प्रसिद्ध था लेकिन आज इसकी दशा दयनीय प्रतीत होती है। इतिहासकारों का मानना है कि भूरागढ़ किला सिर्फ वास्तुकला या इतिहास का एक टुकड़ा बन के रह गया है जिसे यदि संजो कर नहीं रखा गया तो जल्द ही मिट्टी में बदल जायेगा।
16/07/2016 को प्रकाशित
बुंदेलखंड की शान – बांदा का भूरागढ़ किला
आज है वीरान और खंडहर