पानी, डाकू और पहाड़ की तोड़ाई
जिला महोबा। यहां समस्याओं की कमी नहीं है। पर कुछ समस्याएं ऐसी हैं जिन्हें खत्म करने के लिए नई सरकार को जल्दी कदम उठाने की ज़रूरत है।
पानी को तरसते लोग – महोबा तालाबों का शहर माना जाता है। पर गर्मी शुरू होते ही यहां के लोग पीने के पानी को तरसने लगते हैं। उदाहरण जैसे पनवाड़ी ब्लाक के रिवई गांव में पचासों हैण्डपंप लगे हैं। पर पानी खारा होने के कारन वहां के लोगों को दो किलोमीटर दूर पीने का पानी भरने जाना पड़ता है।
जान जोखिम में, पर टूट रहे पहाड़ – पत्थर तोड़ाई का काम वैसे तो बुन्देलखण्ड हर जगह धड़ल्ले से चल रहा है। पर महोबा के कबरई और जैतपुर ब्लाकों में तो मुख्य काम यही है। क्रशर चलने से होने वाले शोर और लगातार उड़ रही धूल से लोगों को बीमारियां हो रही हैं। खुलेआम बच्चे पत्थरों को तोड़ते ढोते दिख जाएंगे।
ऊबड़ खाबड़ रास्ते – सुनते है पहले लोग रथ और घुड़सवारी से चलते थे। पर आज यहां पैदल चलना मुश्किल है। यहां के रास्ते इतने खराब हैं कि आए दिन छोटी बड़ी घटना होती रहती है। पनवाड़ी के दुलीचन्द्र पाण्डेय, खरेला के मनोज कुमार का कहना है कि पुरानी सरकार तो मानो महोबा को भूल ही गई थी लेकिन उम्मीद है कि नई सरकार शायद कुछ करे।
जिला बांदा और चित्रकूट। पूरे बुंदेलखंड में विकास और पानी के मुद्दे को सुलझाना नई सरकार के सामने बड़ी चुनौती होगी। बांदा के नरैनी ब्लाक के कई गांव बघोलन, जरैला, बिलैया मठ, बघेलाबारी, गोबरीगोडरामपुर, मवइयन छानी, कोलुहा, संग्रामपुर, बरछा डंडिया, खरौंच और कालिंजर और करतल जैसे पूरे जिले में कई गांव हैं कोई बुनियादी सुविधा नहीं हैं। चित्रकूट जिले के ब्लाक मानिकपुर के गांव ददरी मड़ैयन, भीठा और पत्रकारपुरम। कर्वी ब्लाक के भरतपुर गोंडा जैसे कई गांवों में बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं अब तक नहीं पहुंची हैं। सड़कें मुख्य मार्गों से नहीं जुड़े हैं। यह जंगली क्षेत्र हैं यहां डाकुओं का आतंक हमेशा छाया रहता है। बांदा का तिंदवारी क्षेत्र डार्क जोन घोषित किया जा चुका है। यानी यहां यहां पानी खतरनाक स्तर तक नीचे जा चुका है। जिले में बेरोज़गारी बड़ी समस्या है। यहां पर करीब पंद्रह सालों से कताई मिल बंद पड़ी है। जिसके कारण हजारों हजार लोग बेरोज़गार हैं। लेकिन इसे शुरू करने की कोशिश नहीं की जा रही है।
बुंदेलखंड की चुनौतियां
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