बिहार। देश के नियंत्रक-महालेखा परीक्षक (एक ऐसे अधिकारी जो सभी राज्यों के खर्चे पर नज़र रखते हैं) की एक रिपोर्ट के अनुसार 2012 से 2013 के बीच बिहार में लगभग दस हज़ार करोड़ रुपए की धांधलेबाज़ी हुई है।
जुलाई में बिहार विधानसभा के मानसून सत्र में इस रिपोर्ट को पेश किया गया। रिपोर्ट के अनुसार राज्य के अलग-अलग विभागों में करोड़ों रुपए का खर्च दिखाया तो गया है पर उसकी पुष्टि के लिए रसीद नहीं हैं और योजनाओं में लगी इस राशि का ज़मीनी स्तर पर कोई प्रभाव नहीं देखा गया है।
लगभग चार सौ तीस करोड़ रुपए का घोटाला अकेले धान के मिलों से जुड़ा है। बिहार में चल रही योजना के अनुसार धान मिलों के मालिकों को हर सौ क्विंटल धान पर तेइस क्विंटल धान वेतन के नाम पर रखने को मिलता है। 2012 से 2013 में मिल के मालिकों ने लगभग पच्चीस लाख क्विंटल धान सरकार को नहीं लौटाया। इसके अलावा, डेढ़ सौ करोड़ का घोटाला फसल के बीमा में गायब किया गया है। राज्य के सहकारी विभाग ने यह राशि कई ऐसे किसानों में बांटी है जिन्होंने पूरे साल कभी कोई फसल लगाई ही नहीं थी। सबसे बड़ी कमी शिक्षा में ‘सर्व शिक्षा अभियान’ को लेकर देखी गई। बिहार में प्राइमरी स्कूलों में सभी ग्रामीण बच्चों का दाखिला नहीं हो पाया है। लगभग दस लाख बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं और स्कूलों में बुनियादी सुविधाएं, जैसे शौचालय, मैदान आदि, नहीं हैं।
कई सालों से बिहार राज्य सरकार ने केंद्र से विकास के लिए अलग से बीस हज़ार करोड़ रुपए की मांग की है। इस रिपोर्ट ने इस मांग पर भी सवाल खड़ा कर दिया है। मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने कहा कि रिपोर्ट पर चर्चा की जाएगी और समय आने पर सख्त कारवाई भी की जाएगी।
बिहार में दस हज़ार करोड़ के घोटाले आए सामने
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