मैं चांदनी, एक संस्था से जुड़ी हूँ जहाँ महिलाएं और पुरुष साथ में काम करते हैं। इन पुरुषों के बीच में था, एक खूबसूरत ड्राइवर। लम्बा, गोरा चिट्टा, भूरी आँखों वाला। एक नज़र देखते ही मेरी आँखें उससे लड़ गयी। वह भी कम नहीं था। जीप में मैं जिस तरफ बैठती, वह शीशा मेरी तरफ घुमा देता, बार बार मुझे उसका पूरा चेहरा दिखता और मेरा चेहरा उसे दिखता। मैं नज़रें चुराने की कोशिश तो करती पर बिना देखे भी मन न मानता। एक बार जब उसने आँख मार दी तो मैं मारे शर्म के पानी-पानी हो गयी। अब एक बेचैनी सी होने लगी। ना वह कुछ कह पाता न मैं पर दोनों सोचते वही।
एक रात सभी कार्यकर्ता होटल के बड़े हॉल में रुके थे। मैं किसी काम से नीचे उतरी और जीप में वह मेरे सामने आ के खड़ा हो गया। मैं आगे बड़ी तो पीछे से मेरा हाथ पकड़ लिया। उसका हाथ लगते ही मेरा शरीर सुन्न पड़ गया। मैं हाथ छुड़ा कर भाग तो गयी पर बाद में मुझे बहुत अच्छा लगा। रात भर मैं उसी के बारे में सोचती रही।
अगले दिन सुबह में अपने बैग से पेन निकाल रही थी तो मेरे बैग से एक लेटर मिला जिसमे लिखा था आई. लव. यू चांदनी। मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, तुम्हे हाँ करना ही होगा। मैंने उस लेटर को पचीस बार पढ़ा। जब भी लेटर पढ़ती, मेरा मन करता बस मैं भी आई. लव. यू बोल दूँ। पर मुझे इज़्ज़त का डर था। अगर किसी को पता चल गया तो! पर मेरा भी दिल ना बड़ा वो था। उसको बगैर आई. लव. यू बोले रहा नहीं गया तो मैंने भी एक चिठ्ठी लिख कर उसकी सीट पर छोड़ दी।
अब क्या पूछना था प्रेम कहानी आगे बढ़ती गयी। एक दिन वह रात में मुझे मेरे घर अकेले छोड़ने गया। बस एक जगह गाड़ी खड़ी की और चुम्मा लिया। मुझे भी अच्छा लगा छोड़ने का मन नहीं कर रहा था। लेकिन जाना तो अपने-अपने घर ही था।
दूसरे ट्रिप में मिली तो उसने कहा चौराहे पर 10 मिनट बाद मिलना। मैं अपने आप को रोक नहीं पाई और पहुंची गई. वो ऑटो में बैठा था, मेरे आते ही उसने बस हाथ पकड़ा और ऑटो में बैठा कर ले आया राऊघाट। 50 रुपयों में एक कमरा लिया और बस 14 साल गुज़ार दिए।
यह लेख -एजेंट्स ऑफ़ इश्क और खबर लहरिया के कार्यशाला में लिखा गया हैं