उत्तर प्रदेश। 1 अप्रैल 2010 को भारत सरकार ने शिक्षा के अधिकार के लिए एक खास कानून लागू किया। इस कानून को सभी राज्यों में सफलतापूर्वक पूरी तरह से लागू करने के लिए राज्य सरकारों को तीन साल का समय दिया गया था। सरकार की जि़म्मेदारी है कि हर बच्चे को इस कानून का लाभ मिले। तीन साल बाद ज़मीनी सच्चाई कुछ और ही है।
23 मार्च को तेरह राज्यों ने लिखित में तीन साल की इस समय सीमा को बढ़ाने की मांग की। अधिकतर राज्यों के शिक्षा मंत्रियों का कहना है कि केंद्र सरकार ज़मीनी सच्चाइयों को नहीं समझती। केंद्र शिक्षा मंत्रालय के मंत्री पल्लम राजू ने सभी राज्यों को दो साल का समय दिया और कानून को लागू करने पर तीन सालों की रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया है।
उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार ने इस कानून को लागू करने में एक साल लगा दिया और कानून 2011 में ही लागू हुआ। जहां सरकारी आंकड़े कानून की दुर्दशा पर रौशनी डालते हैं, वहीं गैर सरकारी संस्थाओं के आंकड़े और भी बुरी हालत दर्शाते हैं। प्रथम नाम की संस्था के अनुसार उत्तर प्रदेश में बीच में ही पढ़ाई छोड़ने वाले बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है और सिर्फ पंद्रह प्रतिशत स्कूलों में पर्याप्त टीचर हैं।
- जिला चित्रकूट, ब्लाक मऊ, गांव डोड़ा माफी के जूनियर हाई स्कूल में दिसंबर 2011 से साठ बच्चों के बीच सिर्फ एक मास्टर हैं। सहायक शिक्षा अधिकारी जीतेंद्र कुमार ने कहा कि खंड क्या जिले में टीचरों की कमी रहेगी जब तक सरकार नए टीचर नियुक्त नहीं करती।
- जिला अम्बेडकर नगर, ब्लाक भीटी, गांव सरैया वीरसिंघपुर के प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक स्कूल में अनुपस्थित पाए गए।
- जिला फैजाबाद, ब्लाक तारुन के प्राथमिक विद्यालय में सालों से मरम्मत नहीं हुई है। हैदरगंज कसबे के कन्या पूर्व माध्यमिक विद्यालय में पहले मिड डे मील नहीं बनता था।
- जिला वाराणसी, ब्लाक चिरईगांव, गांव बर्थराकला के प्राथमिक विद्यालय द्वितीय में पांच सालों से बाउंडरी गिरी हुई है और शौचालय भी नहीं बना है।
शिक्षा के मुद्दे पर काम कर रही दिल्ली की कार्यकर्ता अर्चना द्विवेदी ने कहा कि सरकार को स्कूलों की जवाबदेही सुनिश्चित करने पर ध्यान देना होगा। राज्य स्तर पर बाल संरक्षण आयोग और स्कूल प्रबंधन समितियों को असरदार बनाने के लिए आर्थिक व्यवस्था करना ज़रूरी है। इन समितियों का क्षमता निमार्ण किया जाना चाहिए जिससे कि वे स्कूल की व्यवस्था के मामले में दखल दे सकें।