ज़िला बांदा, ब्लाक विसण्डा, गांव तेंदुरा। इस गांव में घुसते ही एक तालाब से कुछ कदम की दूरी पर एक कुआं नजर आता है। यह कोई साधार कुआं नहीं है। ऐसा गांव वालों का कहना है। इस कुएं को आर्शीवाद कुआं कहते हैं। मान्यता है कि इस कुएं में दीया जलाकर उसे पूजा जाए तो बाबा उसे आर्शीवाद देते हैं और उसकी मुराद पूरी करते हैं। आखिर यह बाबा हैं कौैन?
गांव के ही करीब तीस साल के एक लड़के ने बताया कि बाबा यहां कई सौ सालों पहले आए थे। उन्होंने यह तालाब, कुआं, मंदिर बनाया था। इस गांव के लोगों को आर्शीवाद दिया था कि यहां पानी की कमी नहीं होगी। खुशहाली रहेगी। तभी से इस कुएं का नाम आर्शीवाद कुआं पड़ा। झांकने पर देखो तो वाकई कुएं में पानी भरा है। इस सवाल पर कि बाबा का कुआं अगर इतना आर्शीवाद देने वाला है तो इसका पानी क्यों नहीं पीते? जवाब में दूर खड़े गोबिंद सिंह नाम के एक बूढ़े ने कहा यह एक ऐतिहासिक कुआं है। इसे अब पूजा के लिए ही इस्तेमाल करते हैं। उन्होंने हंसते हुए यह भी कहा कि पूजा करने में मेहनत नहीं लगती है पर कुएं से पानी निकालने में मेहनत पड़ती है।
गोबिंद सिंह बहुत चमत्कारी हैं। इस गांव पर तो उनका आर्शीवाद है। फिर पूछा कि आखिर इतने चमत्कारी बाबा के कुएं का पानी क्यों नहीं पीते? सवाल यह भी उठता है कि बुंदेलखंड जैसे इलाके में जहां पानी की कमी है। लोग कुएं जैसे पारंपरिक और भरोसेमंद साधनों को इस्तेमाल करने की जगह उन्हें केवल पूजनीय स्थल में क्यों बदल रहे हैं?