कनुप्रिया गोयल स्वतंत्र लेखिका, विचारक और पेशे से इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर हैं
‘पुत्र प्राप्ति’ की गारंटी देने वाले बाबाओं के चंगुल में फंसी महिलाओं के बारे में सुनना अब आम हो चला है लेकिन इस जालसाजी में महिलाओं का बढ़ता शोषण एक गंभीर समाजिक समस्या की तरफ इशारा करता है। अभी हाल ही में बाबा परमानंद की गिरफ्तारी यही दर्शाती है। यह बाबा ‘पुत्र प्राप्ति’ के नाम पर महिलाओं का यौन शोषण करता और उनके अश्लील वीडियो बना कर उन्हें ब्लैकमेल भी करता था। लेकिन इन घटनाओं से सवाल ये उठता है कि आखि़र महिलायें क्यों इन बाबाओं के हाथों शोषण का शिकार होती हैं? किस विश्वास पर? क्यों एक व्यक्ति मात्र गेरुआ कपड़ा पहन किसी भी तरह की चमत्कारी ईश्वरीय शक्ति का विश्वास दिलाने में कामयाब हो जाता है? क्या महिलाएं ख़ुद इस अंधविश्वास में फंसने का निर्णय लेती हैं? या पारिवारिक और सामाजिक दबाव उनको ऐसा करने पर मजबूर करता है?
दरअसल, हमारे समाज में महिलाओं के लिए पुत्र को जन्म देना उनकी विशेष उपलब्धि माना जाता है और यही सारे फसाद की जड़ है।
अक्सर जो निर्णय हमे नितांत व्यक्तिगत लगते हैं उनकी तह में सामाजिक धार्मिक व्यवस्था होती है, इन मामलों में आर्थिक भी सम्भव है कि इन विट्रो फ़र्टिलाइज़ेशन तकनीक से बच्चा पैदा करना वो अफ़ोर्ड न कर सकती हों। जवाब सम्भवतः सत्ता, पितृसत्ता और धर्म के जनविरोधी मेलजोल को समझने में निहित है। जब तक जनता धार्मिक अंधविश्वासों और पाखण्डों की बेड़ियों में जकड़ी रहेगी तब तक सत्ता का धर्म से दमनकारी गठजोड़ रहेगा।
सत्ता और व्यवस्था से इनके गठबंधन से उनकी इस ठगी और यौन अपराधो को न सिर्फ सरंक्षण मिलता है बल्कि उनके प्रभाव और दायरा फैलने में भी मदद मिलती है।
स्त्रियां इनके शोषण का शिकार न हो इसके लिए ज़रूरी है कि वह समाज में अपने सम्मान और अधिकारो के लिये सचेत हों।
इस तरह के बाबाओ के कारनामो का लगातार पर्दाफाश होना और गिरफ़्तारी, न्याय-अन्याय की दृष्टि से ज़रूरी है। उम्मीद ये भी की जा सकती है कि प्रशासन की सतर्कता और तुरंत कार्यवाही कर लोगों को सचेत करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाए।