जि़ला बांदा। नरैनी ब्लाॅक की 44 ग्राम पंचायतों में मनरेगा और इन्दिरा आवास का सोशल आॅडिट 26 दिसंबर 2015 से वित्तीय वर्ष 2014-2015 के लिए चल रहा है। दो ब्लाॅक कोआॅर्डिनेटर (रज्जू खां ब्लाॅक महुआ और निशा ब्लाॅक बिसण्डा) की अध्यक्षता में चलने वाला यह आॅडिट 21 मार्च 2016 तक चलेगा। आॅडिट में दोनों ही योजनाओं में हज़ारों कमियां निकल कर सामने आई हैं। सवाल यह है कि क्या यह कमियां सरकार तक पहुंच पाएंगी? खबर लहरिया पत्रकारों ने 17 और 18 फरवरी को ओरहा गांव का हाल देखा।
सोशल आॅडिट की प्रक्रिया
ब्लाॅक कोआॅर्डिनेटर रज्जू खां ने बताया कि एक गांव में तीन दिन आॅडिट चलता है। पहले दिन दोनांे योजनाओं के तहत हुए कामों के बारे में लाभार्थी से पूछताछ। दूसरे दिन काम का सत्यापन और तीसरे दिन गांववालों के साथ पूछताछ और सत्यापन के तहत किए गए काम की खुली चर्चा। फिर रिपोर्ट जि़ला कोआॅर्डिनेटर को देते हैं। केन्द्र सरकार को रिपोर्ट पहुंचाना जि़ला कोआॅर्डिनेटर की जि़म्मेदारी है। इसपर कार्यवाही करना या न करना केन्द्र सरकार का काम है।
ओरहा गांव का सोशल आॅडिट
अतर्रा कस्बा से लगभग आठ किलोमीटर दूर इस गांव में 16, 17 और 18 फरवरी तक सोशल आॅडिट हुआ। सोशल आॅडिट टीम में चार लोग (डेविड कुमार वर्मा, लवलेश कुमार द्विवेदी, राजेश कुमार प्रजापति और संगीता पटेल) शामिल थे। खबर लहरिया के दो दिन जाने पर भी संगीता पटेल नहीं मिली। टीम के लोग उसके न आने का कारण नहीं बता पाए। आॅडिट में निकल के आया कि गांव में कुल 20 इन्दिरा आवास पास हुए थे जो आज अधूरे हैं। विमला पत्नी बाबूलाल, ननकी पत्नी मिश्रीलाल, कमला पत्नी राममिलन और कुंती पत्नी फूलचन्द्र का कहना है कि पूर्व प्रधान ने पहली किस्त निकलते ही सब से तेरह-तेरह हज़ार रुपए और पंचायत मित्र ने पांच-पांच सौ रुपए अधिकारियों को सुविधा शुल्क देने के नाम से ले लिए। राजाराम और सुरजा ने बताया कि प्रधान से कई बार जाॅब कार्ड मांगे लेकिन उसने नहीं दिए। किसी के जाॅब कार्ड सादे धरे हैं। पंचायत मित्र ने मज़दूरी ही नहीं चढ़ाई है।
खुली बैठक में ग्रामीणों और प्रधानों के बीच कई बार आई गाली गलौज और मारपीट की नौबत
18 फरवरी को 11 बजे से 3 बजे तक खुली बैठक हुई। बैठक में ब्लाॅक कोआॅर्डिनेटर रज्जू खां, ग्राम विकास अधिकारी चन्द्रिका प्रसाद, पंचायत मित्र, पूर्व और वर्तमान प्रधान, सोशल आॅडिट टीम व गांव के सैकड़ों लोग शामिल थे। प्रधानों और जनता के बीच कई बार लड़ाई हुई। लोग खुलकर काम न मिलने, जाॅब कार्ड में मज़दूरी न चढ़ानेे व प्रधान के पास जाॅब कार्ड रखे होने की समस्या बता रहे थे। आवासों में प्रधान द्वारा लिए गए पैसों को बता रहे थे। पूर्व प्रधान से यह सुना नहीं गया और वह उबल पड़ा। हालांकि पूर्व प्रधान ने बताया कि जिन लोगों ने पैसे लिए जाने की बात कही वे वित्तीय वर्ष 2013-2014 के लाभार्थी हैं। किसी से कोई पैसा नहीं लिया गया, सब झूठ बोल रहे हैं। इसके साथ पंचायत मित्र के बहुत सारे रिकाॅर्ड रजिस्टर अधूरे थे, जिससे बजट संबन्धी घपला संभव है।
सोशल आॅडिट काम की चुनौतियां
एक तरफ जहां टीम को धौंस धमकी, गाली गलौज और मारपीट व दबंग लोगों का सामना करना पड़ता है। वहीं गांव के लागों को खुलकर बोलने व प्रधान के खिलाफ बोलने पर प्रधान, पंचायत मित्र और सचिव की धमकियों का सामना करना पड़ता है। ब्लाॅक कोआॅर्डिनेटर रज्जू खां ने बताया कि आॅडिट में कई चुनौतियां हैं। गांव में लोगों से लड़ाई हो जाती है। कई बार पुलिस प्रशासन का सहयोग लेना पड़ता है। मीटिंग के लिए कुर्सियां, मेज़ व स्पीकर की व्यवस्था होनी चाहिए थी ताकि सब लोगों की आवाज़ सुनी जा सकंे लेकिन उनकी कमी है।
ये हैं राज़ की बातें
सुनने और समझने को मिला कि सोशल आॅडिट टीम के अंदर जातिवाद का बोलबाला है। मान लीजिए प्रधान उच्च जाति से है तो टीम में शामिल उच्च जाति का व्यक्ति कुछ लेन-देन करके झूठी रिपोर्ट लगाएगा। अगर प्रधान निम्न जाति से है तो उसको सोशल आॅडिट की आड़ में टीम खूब ठगती है। प्रधानों और ब्लाॅक कोआॅर्डिनेटरों के बीच लेन-देन का खेल खूब खेला जाता है। ब्लाॅक कोआॅर्डिनेटरों द्वारा रिपोर्ट को बदल देने का काम भी संभव हो जाता है। गांव में प्रधान द्वारा खुली मीटिंग होने के एक दिन पहले लोगों के घर-घर जा कर धमकी देना, कि कोई उसके खिलाफ बोलेगा तो उसकी खैर नहीं है। अधिकारी एक घण्टे के लिए आते हैं और हमें गांव में हमेशा रहना है।