बांस के बना नींक अउर काम मा इं दौरी कसत गांवन तक पहुंचती हैं।
दौरी बनावै वाला बाकेलाला का कहब है कि बांस काट के लइत है फेर वहिके पातर-पातर संसा निकारित है फेर दौरी बनाइत है।
दौरी बनावै वाली सुता बताइस है कि दौरी चीकट मा, रोटी रखे, अउर व्यवहार देय मा लागत है। हम या बांस का नदिया के वा पार से लइत है काहे से हिंया महंगा दुई सौ रुपिया का देत हैं। हुंवा हमका सौ, सवाव सौ का मिल जात है। यहै महीना मा बना लेइत है, काहे से या महीना मा कुछ हमहूं का मिल जात है। नहीं तौ हमार परता नहीं पड़त आय। जेठ आषाढ़ मा बना केबंद कई देइत है।
दौरी बनावै वाले नानाभाई का कहब है कि हुंवा सौ रुपिया बांस लइत है। वहिमा दौरी बनाइत है, तौ कुछ हमार मेहनत निकर आवत है अउर कुछ खर्चा निकर आवत है।
गांवन बेचित है तौ हमै मुनाफा होई जात है नहीं तौ अगर इकटठा बेचित है तौ वा खरीदे वाला बीस रुपिया अपने का काट के लेत हैं। मुनाफा मिला तौ नहीं तौ मेहनत निकरिन आवत है।
रिपोर्टर: गीता
Published on May 2, 2018