जिला बांदा। चैबिस साल की आरती दिवाकर बी.एस.सी. की पढ़ाई के साथ-साथ बांदा के गांव की लड़कियों के मां बाप को खेलकूद के प्रति जागरुक कर रही हैं।
खुद कराटे सीख रही आरती बांदा में कई लड़कियों को बैडमिंटन खेलना सिखाती हैं। ‘मैं चाहती हूं कि एक बार खुद कराटे सीख लूं तो लड़कियों को भी कराटे सिखाउंगी,’ वे बताती हैं।
‘मुझे बचपन से ही खेल में रुचि थी। मैं फुटबाल, बैडमिंटन, खो-खो, कबड्डी, गोली फेंक और दौड़ की प्रतियोगिताओं में भाग लेती थीं। कई बार तहसील और जिला स्तर पर जीत भी हासिल की।’ आरती के पिता षिवकुमार दिवाकर पुलिस विभाग में हवलदार के हैं। आरती जैसे-जैसे बड़ी र्हुइं तो समाज की सोच के चलते उन्हें अपने खेल को आगे बढ़ाने में बहुत मुश्किलें हुईं।
‘मुझे मदद की ज़रूरत थी। मौके की तलाश में अब तक हूूं। एक लोकल संस्था में मैंने कम्प्यूटर का काम करने की नौकरी की। जब उन्हें खेल सिखाने के लिए टीचर की ज़्ारूरत थी, तब जाकर मुझे पहला मौका मिला। मैं बांदा के हरदौली, गोयरा, छनेहरा और करबई में लगभग बीस लड़कियों को खेल सिखा रही हूं।’
बांदा की बैडमिंटन और कराटे चैम्पियन
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