14 जून 1857 में अग्रेजों के विरूद्ध युद्ध हुआ। उस युद्ध में बांदा के विरोधी सेना के तीन हजार क्रान्तिकारी दुर्ग में मारे गए। लेकिन बांदा गजेटियर में केवल आठ सौ लोगों का शहीद होने का जिक्र है। भूरागढ़ दुर्ग के आसपास अनेक शहीदों की मजारें मिली है। मकर संक्रान्ति के अवसर पर शहीदों को श्रृद्धाजंलि देने के लिए हर साल मेले का आयोजन बुन्देलखण्ड पर्यटन विभाग समिति करता है। यहां से केन नदी दिखती है और याद आती है नट और राजा भूरा की बेटी की प्रेम कहानी। राजा ने नट से कहा था कि अगर वो केन नदी एक रस्सी पर चलकर पार कर लेगा तो राजा अपनी बेटी की शादी उस से करवा देंगे। लेकिन बीच नदी में राजा ने रस्सी काट दी और नट डूब के मर गया।