जिला बांदा, शहर बांदा हेंया के रहै वाले दलित मड़इन का आरोप है कि हमरे साथैै दूसर जाति के मड़ई भेदभाव करत हैं। काहे से कि हम लोग चमड़ा छीलै का काम करित हन। यहिसे दूसर जाति के मड़ई छूत मानत हैं ।
चमड़ामंडी,परशुराम तालाब के रहै वाले रामबाबू का कहब है कि या काम हम लोग पुरखन के जमाने से करित हन। यहिमा आधा रुपिया ठेकेदार अउर आधा रुपिया हमका मिलत है। या काम रोजै नहीं मिलत आय। या कारन से मजदूरी भी करित हन। यहिसे सौ दुई सौ रुपिया मिल जात है। कुछ सरकारी योजना का लाभ मिलत है। यहिसे हमार बच्चन का खर्चा चल जात है। चमड़ा छीलै का काम करित हन। यहिसे मड़ई छूत मानत हैं।
बिन्दा का कहब है कि चमड़ा छीलै खातिर पहिले वहिमा नमक लगावैै का परत है। फेर यहिके बाद वहिका छीला जात है। नमक लगावै से चमड़ा जल्दी निकल आवत है। बड़ी जाति के मड़ई कहत है कि तुम लोग या कम छोड़ देव। या काम खराब है। यहिसे बड़ी जाति मड़ई हम लोगन से छूत मानत हैं।
मर्दन नाका मोहल्ले के अमित का कहब है कि हमरे साथै बहुतै भेद भाव कीन जात है। जउन होटल मा चाय पियत हन तौ दुकान वाले कहत हैं कि आपन चाय का गिलास खुदै धो के धरौ। यहिसे मोर मानब है कि लोगन के डुई कौड़ी के सोच है। लोगन का अपने या सोंच बदलै के जरूरत है । यहिनतान सुशीला का कहब है कि अगर बाजार जइत हन तौ जउन मड़ई जानत हैं कि इं कउन जाति के हैं तौ यहिसे छूत मानत हैं अउर कहत हैं कि तुम हमसे दूर रहौ। अगर छू लेहौ तौ नहाये का परी। या कारन से हमका बहुतै खराब लागत है। अपने से मड़ई हम लोगन का काहे नीची नजर से देखत हैं।कत्तौं कत्त्तौं इनतान लागत है कि का हम इन्सान नहीं आय।
करन भाई का कहब है कि दलितन का सरकारी योजना का लाभ दीन जात है।
चमड़ामंडी,परशुराम तालाब के रहै वाले रामबाबू का कहब है कि या काम हम लोग पुरखन के जमाने से करित हन। यहिमा आधा रुपिया ठेकेदार अउर आधा रुपिया हमका मिलत है। या काम रोजै नहीं मिलत आय। या कारन से मजदूरी भी करित हन। यहिसे सौ दुई सौ रुपिया मिल जात है। कुछ सरकारी योजना का लाभ मिलत है। यहिसे हमार बच्चन का खर्चा चल जात है। चमड़ा छीलै का काम करित हन। यहिसे मड़ई छूत मानत हैं।
बिन्दा का कहब है कि चमड़ा छीलै खातिर पहिले वहिमा नमक लगावैै का परत है। फेर यहिके बाद वहिका छीला जात है। नमक लगावै से चमड़ा जल्दी निकल आवत है। बड़ी जाति के मड़ई कहत है कि तुम लोग या कम छोड़ देव। या काम खराब है। यहिसे बड़ी जाति मड़ई हम लोगन से छूत मानत हैं।
मर्दन नाका मोहल्ले के अमित का कहब है कि हमरे साथै बहुतै भेद भाव कीन जात है। जउन होटल मा चाय पियत हन तौ दुकान वाले कहत हैं कि आपन चाय का गिलास खुदै धो के धरौ। यहिसे मोर मानब है कि लोगन के डुई कौड़ी के सोच है। लोगन का अपने या सोंच बदलै के जरूरत है । यहिनतान सुशीला का कहब है कि अगर बाजार जइत हन तौ जउन मड़ई जानत हैं कि इं कउन जाति के हैं तौ यहिसे छूत मानत हैं अउर कहत हैं कि तुम हमसे दूर रहौ। अगर छू लेहौ तौ नहाये का परी। या कारन से हमका बहुतै खराब लागत है। अपने से मड़ई हम लोगन का काहे नीची नजर से देखत हैं।कत्तौं कत्त्तौं इनतान लागत है कि का हम इन्सान नहीं आय।
करन भाई का कहब है कि दलितन का सरकारी योजना का लाभ दीन जात है।
रिपोर्टर- मीरा देवी
01/08/2016 को प्रकाशित
“दो कौड़ी की सोच है” जातिगत भेदभाव
बाँदा में चमड़े का काम करने वाले दलितों की आप-बीती