जिला बांदा, ब्लॉक नरैनी, 2 अक्टूबर 2016। देश में शिक्षा का अधिकार 2010 में लागू हुआ था, जिस में सभी 6 से 14 साल तक के बच्चों को स्कूल भेजने की बात हुई थी। पर यह कानून काम पर आ रहा है या नहीं, यह बात शायद नरैनी का प्राथमिक विद्यालय बताता है।
नरैनी के प्राथमिक विद्यालय में बच्चों को निशुल्क मिलने वाली किताबें उपलब्ध नहीं हुई हैं, जबकि स्कूल खुले पांच महीने बीत चुके हैं । बच्चों ने बिना किताबों के छमाही परीक्षा भी दे दी है। विद्यालय प्रशासन संकुल स्तर से किताबें नहीं आने की बात कहते हैं और उन्होंने पुराने विद्यार्थियों से किताबें लेकर नए विद्यार्थियों को पढ़ाया है।
विद्यालय की प्रभारी अनीता भी नाम मात्र की किताबें आने की बात कहती हैं और विद्यायल में बच्चे पुरानी फटी किताबों को साझा करके पढ़ते हैं ।
इस विद्यालय की प्रधान अध्यापिका शम्सुल निशा कहती हैं, “अभी तक कक्षा एक और दो की एक-एक किताब आई हैं और अभी तक कोई अन्य किताब नहीं आई है।” वह विद्यालय में किताबों के साथ अध्यापकों की कमी होने की बात भी कहती हैं। विद्यालय में कमी का रोना किताबों तक ही नहीं है बल्कि 109 बच्चों में कुल 5 अध्यापक हैं, जिसके कारण अध्यापकों पर भी अधिक से अधिक कक्षा लेने का दबाव है।
बिना किताबों के बच्चों को पाठ्यक्रम के हिसाब से पढ़ाई नहीं कराई जाती है। विद्यालय के अध्यापक बच्चों को उनकी जरुरत के हिसाब से पढ़ाते हैं, जैसे बच्चे जिन चीजों में कमजोर हैं, उनका अभ्यास अधिक करते हैं। शम्सुल निशा इस विषय में कहती हैं, “पाठ्यक्रम के हिसाब से क्या पढ़ाएं जब वह उपलब्ध ही नहीं है?”अध्यापिका अर्चना वाजपाई भी पूरा पाठ्यक्रम नहीं होने की बात कहती हैं। वे बच्चों को प्रश्न उत्तर ब्लैक बोर्ड में लिखा देते हैं, जिन्हें बच्चे लिखकर परीक्षा देते हैं।क्योंकि बच्चों को किताबों से पाठ पढ़ने को नहीं मिल रहा है, वे सब बेचारे सीधे प्रश्नों के उत्तरों को याद करते हैं ताकि वे परीक्षा दे सके। किताबों से पढ़ने की ललक पर पिंटू, 7, बोलता है, “हम लिखते रहते हैं। हमें पढ़ने को कुछ नहीं मिलता।” पिंटू की तरह ही आशाराम,14, और अनिल, 12, भी किताबें नहीं होने से कुछ नहीं समझ आने की बात कहते हैं।
किताबें नहीं मिलने के विषय पर ब्लॉक संसाधन केंद्र के प्रभारी जफर अली का कहना हैं, “80 प्रतिशत किताबें तो आ गई हैं पर अभी 20 प्रतिशत किताबें नहीं आई।” वह किताबें के आने में हो रही देरी को राज्य स्तर की देरी कहकर बात खत्मकर देते हैं।
रिपोर्टर- गीता
02/11/2016 को प्रकाशित